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________________ १७४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ७, २१४. पढमखंडस्सुवरि ठविदे दसखंडविखभ-पण्णारसखंडायामखेत्तं होदण अच्छदि । संपहि पुन्नमवणिय पुध दृविदपंचखंड विक्खंभ-एकारखंडायामखेत्तं घेत्तण एदस्सुवरि दृविदे दक्षिण-पच्छिमदिसासु पण्णारसखंडमेत्तं पुव्वुत्तरदिसासु दस-एक्कारसखंडपमाणं होदूण चिट्ठदि । पुणो पुव्वमवणेदूण पुध दृविदखेत्तम्हि एगखंडद्धविक्खमम्मि इगिदालखंडायामम्मि एगखंडद्धविक्खंभ-सगलेगखंडायाम खेत्तं घेत्तूण पुध दृविय सेसक्खे. त्तायामद्वखंडाणि कादण परावत्तिय एगखंडस्सुवरि सेसखंडेसु दृविदेसु चत्तारिखंडविक्खभ पंचखंडायामं 'खेत्तं होदि । तम्मि पुव्विल्लखेत्ते समयाविरोहेण हविदे समचउरसं पण्णारसखंड विक्खभायाम खेतं होदि । एदं घेत्तूण पण्णारसखंडविक्खंभ-इगिदालखंडायामखेत्तस्सुवरि दृविदे पण्णारसखंड विखंभ-छप्पण्णखंडायामखेत्तं होदि । एत्थ एगपंतिसगलपक्खेवो होदि, उक्कस्ससंखेजमेत्तपिसुलाणं तत्थुवलंभादो। तेणेत्थ पण्णारसखंडमेत्ता सगलपक्खेवा होनि ति इगिदालखंडमेत्तसगलपक्खेवेसु पक्खित्तेसु छप्पण्णखंडमेत्ता सगलपक्खेवा होति । एदे सव्वे मिलिदूण जहण्णट्ठाणं, उक्कस्ससंखेजमेत्तसगलपक्खेवाणमेत्थुवलंभादो। एदम्हि जहण्णट्ठाणे पक्खित्ते दुगुणवड्डी होदि । पुणो एगखंडद्धविक्खभ-सगलेगखंडायामं पुबमवणिय पुध हविदखेत्तं विक्खंभेण छप्पण्ण कर प्रथम खण्डके ऊपर स्थापित करनेपर दस खण्ड विष्कम्भ और पन्द्रह खण्ड आयाम युक्त क्षेत्र होकर स्थित रहता है। अब पूर्वमें अपनीत करके पृथक् स्थापित पाँच खण्ड विष्कम्भ और ग्यारह खण्ड आयाम युक्त क्षेत्रको ग्रहणकर इसके ऊपर स्थापित करनेपर दक्षिणपश्चिम दिशाओं में पन्द्रह खण्ड मात्र और पूर्व-उत्तर दिशाओमें दस ग्यारह खण्ड प्रमाण होकर स्थित होता है । फिर एक खण्डके अर्ध भाग विष्कम्भ और इकतालीस खण्ड आयाम युक्त पूर्वमें अपनयन करके पृथक् स्थापित क्षेत्रमेंसे एक खण्डके अर्ध भाग विष्कम्भ और सम्पूर्ण एक खण्ड आयाम युक्त क्षेत्रको ग्रहणकर पृथक स्थापित करके शेष क्षेत्रके आयामकी ओरसे आठ खण्ड करके परिवर्तितकर एक खण्ड के ऊपर शेष खण्डोंके स्थापित करनेपर चार खण्ड विष्कम्भ और पाँच खण्ड आयाम यक्त क्षेत्र होता है। उसको यथाविधि पहिलके क्षेत्रके ऊपर स्थापित करनेपर पन्द्रह खण्ड विष्कम्भ और उतने ही आयामसे युक्त क्षेत्र होता है। इसको ग्रहणकर पन्द्रह खण्ड विष्कम्भ और इकतालीस खण्ड आयाम युक्त क्षेत्रके ऊपर स्थापित करनेपर पन्द्रह खण्ड विष्कम्भ और छप्पन खण्ड आयाम युक्त क्षेत्र होता है। यहाँ एक पंक्ति रूप सकल प्रक्षेप होता है, क्योंकि, वहाँ उत्कृष्ट संख्यात मात्र पिशुल पाये जाते हैं। इसीलिये चूंकि यहाँ पन्द्रह खण्ड मात्र सकल प्रक्षेप होते हैं, अतएव इकतालीस खण्ड मात्र सकल प्रक्षेपोके मिलानेपर छप्पन खण्ड मात्र सकल प्रक्षेप होते हैं। ये सब मिलकर जघन्य स्थान होता है, क्योंकि, यहाँ उत्कृष्ट संख्यात मात्र सकल प्रक्षेप यहाँ पाये जाते हैं। इसको जघन्य स्थानमें मिलानेपर दुगुणी वृद्धि होती है। फिर एक खण्डके अर्ध भाग विष्कम्भ और एक सम्पूर्ण खपड आयाम रूप पहिले अपनीत करके पृथक् १ अ-ताप्रत्योः -खंडायामखेत्तं' अप्रतौ 'खंडायामक्खेत्त' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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