SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, ७, २०१.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [१२५ असंखेज्जलोगमेच्छहाणाणमुक्कस्साणुभागबंधट्ठाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव जहण्णविसोहिहाणस्स जहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो एदस्स चेव असंखेज्जलोगमेत्तछहाणाणं उक्कस्साणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो एदस्सुवरि सव्वविसुद्धबादरेइंदियचरिमसमयउक्कस्सविसोहिट्ठाणस्स जहण्णागुभागबंधट्ठाणमणतगुणं । पुणो एदस्स चेव असंखेज्जलोगमेत्तछहाणाणमुक्कस्साणुभागबघटाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव चरिमसमए जहण्णविसोहिट्ठाणस्स जहण्णाणुभागबंधट्ठाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव असंखेज्जलोगमेतबहाणाणमुक्कस्साणुभाबंधट्ठाणमणंतगुणं । एवमणंतगुणकमेण दुचरिमादिसमएसु ओदारेदव्यं जाव अंतोमुहुत्तं त्ति । तत्तो बादरेइंदियसत्थाणुक्कस्सविसोहिट्ठाणस्स जहण्णाणुभागबंधाणमणंतगुणं । पुणो एदस्स चेव असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणं उकस्साणुभागबंधट्ठाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव बादरेइंदियसत्थाणजहण्णविसोहिट्ठाणस्स जहण्णाणुभागबंधट्ठाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव असंखेज्जलोगमेत्तछहाणाणमुक्कस्साणुभागबंधट्टाणमणतगुणं । पुणो एदस्सुवरि सव्वविसुद्धसुहुमणिगोदअपज्जत्तचरिमसमयउकस्सविसोहिहाणस्स जहण्णाणुभागबंधटाणमणंतगुणं । तस्सेव असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणमुक्कस्साणुभागबंधद्वाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव चरिमसमयजहण्णविसोहिट्ठाणस्स णाणावरणजहण्णाणुभाग असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानीसम्बन्धी उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगणा है। फिर उसके ही जघन्य विशुद्धिस्थान सम्बन्धी जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर इसकेही असंख्यात लोक मात्र षद्स्थानों सम्बन्धी उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है। पुनः इसके आगे सर्वविशुद्ध बादर एकेन्द्रियके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट विशुद्धि स्थान सम्बन्धी जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर इसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों सम्बन्धी उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसकेही अन्तिमसमयमें जघन्य विशुद्धिस्थान सम्बन्धी जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसकेही असंख्यात लोक मात्र छह स्थानों सम्बन्धी उत्कृष्ट अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। इस प्रकार द्विचरमादिक समयोंमें अनन्तगुणितक्रमसे अन्तर्मुहूर्त तक उतारना चाहिये । उसके आगे बादर एकेन्द्रियके स्वस्थान उत्कृष्ट विशुद्धिस्थान सम्बन्धी जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर इसके ही असंख्यात लोक मात्रषट्स्थानों सम्बन्धी उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर उसी बादर एकेन्द्रियके स्वस्थान जघन्य विशुद्धिस्थान सम्बन्धी जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों सम्बन्धी उत्कृष्ट अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। पुनः इसके आगे सर्वविशुद्ध सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट विशुद्धिस्थान सम्बन्धी जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। उसीके असंख्यात लोक मात्र षटस्थानों सम्बन्धी उत्कृष्ट अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही अन्तिम समयमें जघन्य विशद्धिस्थान सम्बन्धी ज्ञानावरणका जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसीके असं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy