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________________ १२४] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ७, २०१. पुणो एदस्सुवरि सव्वविसुद्धचरिमसमयतेइंदियउक्कस्सविसोहिहाणस्स णाणावरणजहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव असंखेज्जलोगमेत्तछहाणाणं णाणावरणउक्कसाणुभागबंधट्ठाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव चरिमसमए जहण्णविसोहिट्ठाणस्स जहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । एदस्स चेव असंखेज्जलोगमेत्तछहाणाणमुक्कस्साणुभागबंधट्ठाणमणंतगुणं । एवं दुचरिमादिसमएसु अणंतगुणकमेण ओदारेदव्वं जाव अंतोमुहुत्तं त्ति । पुणो तेइंदियसत्थाणविसोहिउक्कस्सट्टाणस्स जहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो एदस्स चेव असंखेज्जलोगमेत्तछहाणाणमुक्कस्साणुभागबंधठाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव सत्थाणविसोहिजहण्णहाणस्स जहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव असंखेज्जलोगमेत्तछहाणेसु उकस्साणुभागबंधहाणमणंतगुणं ।। पुणो एदस्सुवरि बेइंदियसव्वविसुद्धचरिमसमयउक्कस्सविसोहिहाणस्स जहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव असंखेज्जलोगमेत्तछहाणाणमुक्कस्साणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव चरिमसमए जहण्णविसोहिहाणस्स जहण्णाणुभागबंधडाणमणंतगुणं । पुणो एदस्स चेव असंखेज्जलोगमेत्तछहाणेसु उक्कस्साणुभागबंधठाणमणंतगुणं । एवं दुचरिमादिसमएसु अणंतगुणाए सेडीए ओदारेदव्वं जाव अंतोमुहुत्तं त्ति । तत्तो बेइंदियसत्थाणउकस्सविसोहिहाणस्स जहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो एदस्स चव पुनः इसके आगे सर्वविशुद्ध चरमसमयवर्ती त्रीन्द्रियके उत्कष्ट विशुद्धिस्थान सम्बन्धी ज्ञानावरणका जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही असंख्यात लोक मात्र षस्थानों सम्बन्धी ज्ञानावरणका उत्कृष्ट अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही अन्तिम समयमें जघन्य विशुद्धि स्थान सम्बन्धी जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है । इसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों सम्बन्धी उत्कृष्ट अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है । इसी प्रकारसे द्विचरमादिक समयोंमें अनन्तगुणितक्रमसे अन्तर्मुहूर्त तक उतारना चाहिये। फिर त्रीन्द्रियके स्वस्थान विशुद्धि उत्कृष्ट स्थानसम्बन्धी जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर इसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों सम्बन्धी उत्कृष्ट अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही स्वस्थान विशुद्धि जघन्य स्थानसम्बन्धी जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों में उत्कृष्ट अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। पुनः इसके आगे सर्वविशुद्ध द्वीन्द्रियके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट विशुद्धि स्थानसम्बन्धी जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर उसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों सम्बन्धी उत्कृष्ट अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही अन्तिम समयमें जघन्य विशुद्धि स्थान सम्बन्धी जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर इसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों में उत्कृष्ट अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। इस प्रकर द्विचरमादिक समयों में अनन्तगुणित श्रणिरूपसे अन्तर्मुहूर्त तक उतारना चाहिये। इसके पश्चात् द्वीन्द्रियके स्वस्थान उत्कृष्ट विशुद्धिंस्थान सम्बन्धी जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर इसके ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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