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________________ छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २,७,७-१६९ अंतरिदूण वड्डीए अणुवलंभादो। पढमवग्गणाविमागपडिच्छेदसमूहादो विदियवग्गणाविभागपडिच्छेदसमूहो अणंतेहि अविभागपडिच्छेदेहि ऊणो, विदियादो तदियो वि तत्तो विसेसाहिएहिंतो ऊणो त्ति फद्दयत्तं ण जुञ्जदे, कमवड्डीए कमहाणीए वा अभावादो ? ण, भावविहाणे अप्पहाणीकयसमाणधणपरमाणुपुंजे एगोलोवड्डिं मोत्तूण णाणोलिवड्डि-हाणिगगहणाभावादो। ण च एगोलीए कमवड्डी णत्थि, उवलंभादो। किमहं भावविहाणे समाणधणपरमाणुविवक्खा ण कीरदे ? बंधाणुभागखंडयघादेहि विणा उक्कड्डण-ओकडणाहि वड्डि-हाणीयो ण होति त्ति जाणावणहं । तं पि किमहं जाणा विजदे ? एगपरमाणुम्हि हिदाणुभागस्स हाणत्तपदुप्पायणहं। ण भिण्णपरमाणुहिदअणुभागो हाणं, एक्कम्हि चेव अणुभागहाणे अणंतट्ठाणत्तप्पसंगादो। ण जोगहाणेण वियहिचारो, एयदव्वसत्तीए एयत्तं पडि विरोहाभावादो। ण जीवपदेसभेदेण भेदो, अवयवभेदेण दव्वभेदा 'समाधान-क्योंकि उसमें अन्तर देकर वृद्धि नहीं उपलब्ध होती, अतः वह एक है। शंका-चूंकि प्रथम वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोंके समूहसे द्वितीय धर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोंका समूह अनन्त अविभाग प्रतिच्छेद हीन है तथा द्वितीयकी अपेक्षा तृतीय भी उनसे विशेष अधिक अविभागप्रतिच्छेद हीन है, इसलिए पूर्वोक्त स्पर्द्धकका स्वरूप नहीं बनता, क्योंकि, उसमें क्रमवृद्धि अथवा क्रमहानिका अभाव है ? समाधान नहीं, क्योंकि, समान धनवाले परमाणुपुंजको अप्रधान करनेवाले भावविधान अनुयोग द्वार में एक श्रेणिवृद्धिको छोड़कर नानाश्रेणिरूप वृद्धि व हानिका ग्रहण नहीं किया गया है और एक श्रेणिसे क्रमवृद्धि न हो, ऐसा भी नहीं है, क्योंकि वह पाई जाती है। शंका-भावविधान अनुयोगद्वारमें समान धनवाले परमाणुओंकी विवक्षा क्यों नहीं की गई है ? ___समाधान-बद्धानुभाग काण्डकघातोंके बिना उत्कर्षण और अपकर्षणके द्वारा वृद्धि व हानि नहीं होती, इस बातके ज्ञापनार्थ वहाँ समान धनवाले परमाणुओंकी विवक्षा नहीं की गई है। शंका-उसका ज्ञापन किसलिये कराया जा रहा है ? · समाधान-एक परमाणुमें स्थित अनुभागकी स्थानरूपता बतलानेके लिये उसका ज्ञापन कराया जा रहा है । भिन्न परमाणुओंमें स्थित अनुभाग स्थान नहीं हो सकता, क्योंकि, इस प्रकारसे एक ही अनुभागस्थान में अनन्त स्थानरूपताका प्रसंग आता है। यदि कहा जाय कि इस प्रकारसे योगस्थानके साथ व्यभिचार होना सम्भव है, तो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि. एक द्रव्य शक्तिसे योगस्थानकी एकतामें कोई विरोध नहीं है। जीवप्रदेशीके भेदसे भी स्थानभेद होना सम्भव नहीं है, क्योंकि अवयवोंके भेदसे द्रव्यभेद असम्भव है। १ अप्रतौ 'विदियादो तदियादो तत्तो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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