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________________ ६४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ७, १९९. कथं गाणं वग्गणा इदि ववएसो ? ण, वग्ग वग्गणाणं भेदोवलंभादो । वग्गाणं समूहो वग्गणा, तेसिं चेव असमूहो वग्गो । वग्गणा एगा, वग्गा अनंता । तम्हाण सिमेयत्त मिदि । जदि पुण वग्गेहिंतो वग्गणाए अभेदो विवक्खिजदे तो वग्गणाओ वि अनंताओ चैव, वग्गभेदेण तदभिष्णवग्गणाए वि भेदुवलंभादो । तम्हा एगा बि वग्गणा होदि वग्गमेत्ता वि, णत्थि एत्थ एयंतो तत्थ दवडियण यावलंबणाए एसा या वग्गणा त्ति पजवट्ठियणयावलंबणाए एदाओ अनंताओ वग्गणाओ त्ति वा पुध वेदव्वं । एवं ठविय पुणो अण्णं परमाणुं पुच्चिल्लपुंजादो घेत्तूण परणच्छेदणए कदे संपहि पुल्लिपुंजादो एग' परमाणुअविभागपडिच्छेदेहिंतो एगाविभागपडिच्छेदेण अहिया लब्धंति [९]। एसो एत्थ वग्गो त्ति पुध द्ववेदव्वो । एदेण कमेण तस्सरिसमेगेगपरमाणुं घेत्तूण तप्पडिच्छेदं काढूण अनंता वग्गणा उप्पादेदव्वा जाव तस्स - रिसपरमाणू सव्वेणिहिदा त्ति । तेसिं पमाणमेदं [ ९९९ ] । एत्थ वि पुत्रं व एसा वग्गणा या अनंता तिवा वत्तव्वं (एयत्तं मोत्तूण अनंतत्तं ण प्पसिद्धमिदि चे १ एयत्तं कत्थ सिद्धं १ पाहुडचुण्णिसुत्ते सुपसिद्धं लोगपूरणाए एया वग्गणा जोगस्स इत्ति शंका - वर्गोंकी वर्गणा संज्ञा कैसे हो सकती है ? समाधान - नहीं, क्योंकि, वर्ग और वर्गणा में भेद उपलब्ध होता है । वर्गों के समूहका नाम वर्गणा है और उन्हींके असमूहका नाम वर्ग है वर्गणा एक होती है, परन्तु वर्ग अनन्त होते हैं । इस कारण वे दोनों एक नहीं हो सकते । परन्तु यदि वर्गोंसे वर्गणाका अभेद कहना चाहते हैं तो वर्गणायें भी अनन्त ही होंगी, क्योंकि, वर्गोंके भेदसे उनसे अभिन्न वर्गणांका भेद पाया जाता है । इसलिये वर्गणा एक भी होती है और वर्गोंके बराबर भी इस विषय में कोई एकान्त नहीं है । द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन करने पर यह एक वर्गणा है और पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन करनेपर ये अनन्त वर्गणायें हैं । इसलिए इसको पृथक् स्थापित करना चाहिये । इस प्रकार स्थापित करके पुनः पूर्वोक्त पुंज में से अन्य परमाणुको ग्रहण कर बुद्धिसे छेद करनेपर अब पूर्वोक्त पुंजसे एक परमाणुके अविभागप्रतिच्छेदों की अपेक्षा इसमें एक अधिक अविभागप्रतिच्छेद पाये जाते हैं। 8 । यह यहाँपर वर्ग है, अतः उसे पृथक् स्थापित करना चाहिये । इस क्रमसे तत्समान एक एक परमाणुको ग्रहण कर तथा उस एक एक परमाणुके प्रतिच्छेद करके उसके सदृश सब परमाणुओंके समाप्त होने तक अनन्त वर्गोंको उत्पन्न करना चाहिये । उनका प्रमाण यह है । ९९९ । यहाँ भी पहिलेके ही समान यह वर्गणा एक भी है अथवा अनन्त भी हैं, ऐसा कहना चाहिये । शंका- वर्गणाकी एक संख्याको छोड़कर अनन्तता प्रसिद्ध नहीं है ? प्रतिशंका-उसकी एकता कहाँ प्रसिद्ध है ? प्रतिशंकाका समाधान- वह कषायप्राभृतके चूर्णिसूत्र में प्रसिद्ध है, क्योंकि, वहाँ 'लोकपूरण १ - प्रत्योः 'एगा' इति पाठः । २ - श्रापत्योः 'हिदा' इति पाठः । ३ लोगे पुण्णे एक्का वग्गणा जोगस्स त्ति समजोगो त्तिणायव्वो । जयध. १२३६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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