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________________ [८६ ४, २, ७, १९८] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया ण होदि ति, किं तु सबजीवेहि अणंतगुणमेत्तअविभागपडिच्छेदेहि अंतरिदण अण्णट्ठाणमुप्पजदि त्ति जाणावणट्ठमागदा। कंदयपरूवणा किमट्ठमागदा ? अंगुलस्स असंखेजदिभागो एगं कंदयं । पुणो एगकंदयपमाणेण अणंतभागवड्डी-असंखेजभागवड्डी-संखेजभागवड्डी-संखेजगुणवड्डी-असंखेजगुणवड्डी-अणंतगुणवड्डीयो कादण जोइजमाणे सव्ववड्डीयो णिरग्गाओ होति त्ति जाणावणट्ठमागदा। ओज-जुम्मपरूवणा किमट्ठमागदा ? सव्वाणि अणुभागट्टाणाणि सव्वाविभागपडिच्छेदा वग्गणाओ फद्दयाणि कंदयाणि च कदजुम्माणि चेव इत्ति जाणावणट्ठमागदा । छहाणपरूवणा किमट्टमागदा ? अणंतभागवड्डिहाणेसु वड्विभागहारो सव्वजीवरासी, असंखेजभागवड्डिहाणेसु वड्विभागहारो असं खेजा लोगा, संखेजभागवड्डिाणेसु वड्विभागहारो उकस्ससंखेजयं, संखेजगुणवड्डिट्ठाणेसु वड्डिगुणगारो उकस्ससंखेजयं, असंखेजगुणवड्डिहाणेसु वड्डिगुणगारो असंखेजा लोगा, अणंतगुणवड्डिठ्ठाणेसु वड्डिगुणगारो सव्वजीवरासी होदि त्ति जाणावणठमागदा। हेटाहाणपरूवणा किमट्ठमागदा ? कंदयमेत्तअणंतभागवड्डीयो गंतूण असंखेजभागवड्डी होदि, कंदयमेतअसंखेजभागवड्डीयो गंतूण संखेजभागवड्डी होदि, कंदयमेत्तसंखेजभागवड्डीयो गंतूण संखेजगुणवड्डी होदि, कंदयमेत्तसंखेजगुणवड्डीयो गंतूण असंखेजगुणवड्डी होदि, अन्तरको प्राप्त होकर दूसरा स्थान उत्पन्न होता है, यह जतलानेके लिए अन्तरप्ररूपणा की गई है। काण्डकप्ररूपणा किसलिये आई है ? अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र एक काण्डक होता है । पुनः एक काण्डकके प्रमाणसे अनन्तभागवृद्धि, असंख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अनन्तगुणवृद्धि, इन वृद्धियोंको करके देखनेपर वे निरग्र होती हैं, यह बतलानेके लिये काण्डकप्ररूपणा आई है। ओज-युग्मप्ररूपणा किसलिये आई है ? सब अनुभागस्थान, सब अविभागप्रतिच्छेद, वर्गणायें, स्पर्धक और काण्डक कृतयुग्म ही होते हैं, यह जतलानेके लिये उक्त प्ररूपणा आई है। षट्स्थानप्ररूपणा किसलिये आई है ? अनन्तभागवृद्धिके स्थानोंमें वृद्धिका भागहार सर्व जीवराशि है, असंख्यातभागवृद्धिके स्थानों में वृद्धिका भागहार असंख्यात लोक है, संख्यातभागवृद्धिके स्थानोंमें वृद्धिका भागहार उत्कृष्ट संख्यात है, संख्यातगुणवृद्धिके स्थानोंमें वृद्धिका गुणकार उत्कृष्ट संख्यात है, असंख्यातगुणवृद्धिके स्थानोंमें वृद्धिका गुणकार असंख्यात लोक है तथा अनन्तगुणवृद्धिके स्थानों में वृद्धिका गुणकार सर्व जीवराशि है, यह बतलानेके लिये षट्स्थानप्ररूपणा आई है। . अधस्तनस्थानप्ररूपणा किसलिये आई है ? काण्डक प्रमाण अनन्तभागवृद्धियाँ होने पर असंख्यातभागवृद्धि होती है, काण्डक प्रमाण असंख्यातभागवृद्धियाँ होने पर संख्यातभागवृद्धि होती है, काण्डक प्रमाण संख्यातभागवृद्धियाँ होने पर संख्यातगुणवृद्धि होती है, काण्डकप्रमाण संख्यातगुणवृद्धियाँ होने पर असंख्यातगुणवृद्धि होती है, तथा काण्डक प्रमाण असंख्यातगुणवृद्धियाँ होने पर छ. १२-१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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