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________________ ४, २, ७, १३६.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे अप्पाबहुअं साभावियादो। इथिवेदो अणंतगुणो ॥ १३६ ॥ पमत्तसंजदविसोहीदो अणंतगुणहीणसव्यविसुद्धमिच्छाइटिणा बद्धइत्थिवेदजहण्णाणुभागग्गहणादो। णवंसयवेदो अणंतगुणो ॥ १३७॥ मिच्छाइट्ठिणा सम्वविसुद्धेण संजमाहिमुहेण बद्धजहएणाणुभागण्गहणादो । केवलणाणावरणीयं केवलदसणावरणीयं च दो वि तुल्लाणि अणंतगणाणि ॥ १३८ ॥ एदासिं दोणं पि पयडीणं सुहुमसांपराइयचरिमसमए अंतोमुत्तमणंतगणहाणी गंतूण जहण्णाणुभागबंधो जदि वि जादो तो वि मिच्छाइहिणा सव्वविसुद्धण बद्धणqसयवेदजहण्णाणुभामबंधादो अणंतगुणो। कुदो ? साभावियादो। पयला अतगुणा॥ १३ ॥ अपुव्वकरण सगद्धाए पढमसत्तमभागे बट्टमाणेण चरिमसमय सुहुमसांपराइयस्स विसोहीदो अणंतगुणहीणविसोहिणा बद्धत्तादो । क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। उससे स्त्रीवेद अनन्तगणा है ॥ १३६ ॥ .कारण यह है कि यहाँ प्रमत्तसंयतकी विशुद्धिकी अपेक्षा अनन्तगुणी हीन विशुद्धि युक्त सर्वविशुद्ध मिथ्या दृष्टि जीवके द्वारा बांधे गये स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागका ग्रहण किया है। उससे नपुंसकवेद अनन्तगुणा है ।। १३७ ॥ कारण कि संयमके अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध मिथ्यादृष्टिके द्वारा बांधे गये जघन्य अनुभागका ग्रहण किया है। उससे केवलज्ञानावरणीय और केवलदर्शनावरणीय ये दोनों ही प्रकृतियाँ तुल्य होकर अनन्तगुणी हैं ॥ १३८ । यद्यपि इन दोनों ही प्रकृतियोंका अन्तर्मुहर्तकाल तक अनन्तगुणी हानि होकर सक्षमसाम्परायिकके अन्तिम समयमें जघन्य अनुभागबन्ध होता है तो भी सर्वविशुद्ध मिथ्यादृष्टिके द्वारा बांधे गये नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागबन्धकी अपेक्षा वह अनन्तगुणा है, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। उनसे प्रचला अनन्तगुणी है ।। १३६ ॥ क्योंकि, वह अपने कालके सात भागोंमेंसे प्रथम भाग में वर्तमान और अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिककी विशुद्धिसे अनन्तगुणी हीन विशुद्धिवाले अपूर्वकरण रणस्थानवती जीवके द्वारा बांधी जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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