SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, ५, ४८.] वैयणमहाहियारे वैयणलेत्तविहाणे अप्पाबहुग (५९ चउरिंदियअपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥४५॥ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । पंचिंदियअपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥४६॥ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एदाओ पुव्वं परूविदसव्वजहण्णोगाहणाओ लद्धिअपज्जत्ताणं ति घेत्तव्बाओ। संपहि उवरि भण्णमाणाओ णिव्वत्तिपज्जत्ताणं णिव्वत्तिअपज्जत्ताणं [च ] वेत्तव्वाओ । सुहमणिगोदजीवणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥४७॥ एत्थ गुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभागो । तस्सेव अपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ तस्सेवे त्ति उत्ते णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स गहणं, अण्णेण सह पच्चासत्तीए अभावादो। केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो । तस्स को पडिभागो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । केसिंचि आइरियाणमहिप्पारण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना उससे असंख्यातगुणी है ॥४५॥ गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । पंचेन्द्रिय अपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना उससे असंख्यतागुणी है ।। ४६ ॥ गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। ये पूर्व प्ररूपित सब जघन्य अवगाहनाये लब्ध्यपर्याप्तकोंकी ग्रहण करना चाहिये। अब आगे कही जानेवाली निर्वृत्तिपर्याप्तकोंकी और निर्वृत्त्यपर्याप्तकोंकी समझना चाहिये। उससे सूक्ष्म निगोद जीव निवृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है।४७॥ यहां गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है। उसके ही अपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ।। ४८॥ • उसके ही' ऐसा कहनेपर निर्वृत्त्यपर्याप्तकका ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, और किसी दूसरेके साथ प्रत्यासत्ति नहीं है । विशेषका प्रमाण कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवे भाग प्रमाण है। उसका प्रतिभाग क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग उसका प्रतिभाग है। किन्हीं आचार्योंके अभिप्रायसे वह पश्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal use. Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy