________________
१०]
छक्खंडागमे वैयणाखंड [४, २, ५, १९. तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥४९॥
___एत्थ वि तस्सेवे त्ति वयणेण णिव्वत्तीए गहणं । केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिमागमेत्तो ।
सुहुमवाउक्काइयपज्जत्तयस्त जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ५॥
एत्थ गुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभागो। एत्थ पज्जत्ते त्ति उत्ते णिव्वत्तिपज्जचयस्स गहणमण्णस्सासंभवादो ।
तस्सेव अपजत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिमागमेत्तो । तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ केसियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो ।
सुहुमतेउक्काइयणिब्यत्तिपज्जत्यस जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ५३॥
उसके ही पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥ ४९ ।।
यहांपर भी 'उसके ही' इस निर्देशसे निवृत्तिका ग्रहण किया गया है। विशेषका प्रमाण कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र है।
उससे सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ॥५०॥
यहां गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है। यहां पर्याप्तक' ऐसा कहनेपर निर्वृत्तिपर्याप्तकका ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, दूसरेकी सम्भावना नहीं है ।
उसीके अपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥५१॥ विशेष कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उसीके पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥ ५२ ॥ विशेष कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उससे सूक्ष्म तेजकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org