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________________ विषय-परिचय वेदना महाधिकारके अन्तर्गत जो वेदनानिक्षेपादि १६ अनुयोगद्वार हैं उनमेंसे आदिके ४ अनुयोगद्वार पुस्तक १० में प्रकाशित हो चुके हैं। प्रस्तुत पुस्तकमें उनसे आगेके वेदनाक्षेत्रविधान और वेदनाकालविधान ये २ अनुयोगद्वार प्रकाशित किये जा रहे हैं । ५ वेदनाक्षेत्रविधान द्रव्यविधानके समान इस अनुयोगद्वारमें भी पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व, ये तीन अनुयोगद्वार हैं । यहाँ प्रारम्भमें श्री वीरसेन स्वामीने क्षेत्रविधानकी सार्थकता प्रगट करते हुए प्रथमतः नाम, स्थापना, द्रव्य व भावके भेदसे क्षेत्रके ४ भेद बतला कर उनमेंसे नोआगमद्रव्यक्षेत्र (आकाश ) को अधिकारप्राप्त बतलाया है। ज्ञानावरणादि आठ कर्म रूप पुद्गल द्रव्यका नाम वेदना है । समुद्घातादि रूप विविध अवस्थाओंमें संकोच व विस्तारको प्राप्त होनेवाले जीवप्रदेश उक्त वेदनाका क्षेत्र है । प्रकृत अनुयोगद्वारमें चूंकि इसी क्षेत्रकी प्ररूपणा की गई है, अतएव · वेदनाक्षेत्रविधान ' यह उसका सार्थक नाम है। (१) पदमीमांसा-जिस प्रकार द्रव्यविधान (पु. १०) के अन्तर्गत पदमीमांसा अनुयोगद्वारमें द्रव्यकी अपेक्षा ज्ञानावरणादि कर्मोंकी वेदनाके उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य व अजघन्य तथा देशामर्शकभावसे सूचित सादिअनादि पदोंकी प्ररूपणा की गई है; ठीक उसी प्रकारसे यहाँ इस अनुयोगद्वारमें भी उन्हीं १३ पदोंकी क्षेत्रकी अपेक्षा प्ररूपणा की गई है। उससे यहाँ कोई उल्लेखनीय विशेषता नहीं है ( देखिए द्रव्यविधानका विषयपरिचय प्रस्तावना पृ. २-४ )। (२) स्वामित्व अनुयोगद्वारमें उत्कृष्ट पद विषयक स्वामित्व और जघन्य पद विषयक स्वामित्व, इस प्रकार स्वामित्वके २ भेद बतलाकर प्रकरण वश यहाँ जघन्य व उत्कृष्टके विषयमें निश्चित पद्धतिके अनुसार नामादि रूप निक्षेपविधिकी योजना की गई है। इसमें नोआगमद्रव्य. जघन्यके ओघ और आदेशकी अपेक्षा मुख्यतया २ भेद बतलाकर फिर उनमेंसे भी प्रत्येकके द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपेक्षा ४-४ भेद बतलाये हैं। उनमें ओघकी अपेक्षा एक परमाणुको द्रव्य-जघन्य कहा गया है । कर्मक्षेत्रजघन्य और नोकर्मक्षेत्रजघन्यके भेदसे क्षेत्रजघन्य दो प्रकारका है । इनमें सूक्ष्म निगोद जीवकी जघन्य अवगाहनाका नाम कर्मक्षेत्रजघन्य और एक आकाशप्रदेशका नाम नोकर्मक्षेत्रजघन्य बतलाया है। एक समयको कालजघन्य और परमाणुमें रहनेवाले एक स्निग्धत्व आदि गुणको भावजघन्य कहा गया है। आदेशतः तीन प्रदेशवाले स्कन्धकी अपेक्षा दो प्रदेशवाला स्कन्ध द्रव्यजघन्य, तीन आकाशप्रदेशोंमें अधिष्ठित द्रव्यकी अपेक्षा दो आकाशप्रदेशोंमें अधिष्ठित द्रव्य क्षेत्रजघन्य, तीन समय परिणत द्रव्यकी अपेक्षा दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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