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________________ प्राक्-कथन षट्खंडागम भाग १० के प्रकाशनके पश्चात् इतने शीघ्र प्रस्तुत भाग ११ को पाकर पाठक प्रसन्न होंगे, और प्रकाशनसम्बन्धी पूर्व विलम्बके लिये हमें क्षमा करेंगे, ऐसी आशा है। इस भागके प्रथम १९ फार्म अर्थात् पृष्ठ १ से १५२ तक पूर्वानुसार सरस्वती प्रेस, अमरावतीमें छपे हैं; और शेष समस्त भाग न्यूभारत प्रेस, बम्बई, में छपा है । इस कारण यदि पाठकोंको टाइप, कागज व मुद्रण आदिमें कुछ द्विरूपता व दोष दिखाई दे तो क्षमा करेंगे । यदि बम्बईमें मुद्रणकी व्यवस्था न की गई होती तो अभी और न जाने कितने काल तक इस भागके पूरे होनेकी प्रतीक्षा करनी पड़ती। बम्बईमें इसके मुद्रणकी व्यवस्था करा देनेका श्रेय श्रद्धेय पं० नाथूरामजी प्रेमीको है इस कार्यमें हमें उनका औपचारिक रूपमात्रसे नहीं, किन्तु यथार्थतः तन, मन और धनसे सहयोग मिला है जिसके लिये हम उनके अत्यन्त कृतज्ञ हैं। उनकी बड़ी तीव्र अभिलाषा और प्रेरणा है कि धवलशास्त्रका सम्पादन-प्रकाशन-कार्य जितना शीघ्र हो सके पूरा कर देना चाहिये, और इसके लिये वे अपना सब प्रकार सहयोग देनेके लिये तैयार हो गये हैं। इस कार्यकी शेष सब व्यवस्था पूर्ववत् स्थिर रही है जिसके लिये हम धवलाकी हस्तलिखित प्रतियोंके स्वामियोंके तथा सेठ लक्ष्मीचन्द्रजी व व्यवस्थापक समितिके अन्य सदस्योंके उपकृत हैं। सहारनपुरनिवासी श्री रतनचंद्रजी मुख्तार और उनके भ्राता श्री नेमिचन्द्रजी वकील इन सिद्धान्त ग्रंथोंके स्वाध्यायमें असाधारण रुचि रखते हैं, यह हम पूर्वमें भी प्रकट कर चुके हैं। यही नहीं, वे सावधानीपूर्वक समस्त मुद्रित पाठपर ध्यान देकर उचित संशोधनोंकी सूचना भी मेजनेकी कृपा करते हैं जिसका उपयोग शुद्धिपत्रमें किया जाता है। इस भागके लिये भी उन्होंने अपने संशोधन भेजनेकी कृपा की। इस निस्पृह और शुद्ध धार्मिक सहयोगके लिये हम उनका बहुत उपकार मानते हैं। पाठक देखेंगे कि भाग १२ वाँ भी प्रायः इसके साथ ही साथ प्रकाशित हो रहा है, जिससे पूर्वविलम्बका हमारा समस्त अपराध क्षम्य सिद्ध होगा। नागपुर, ३ फरवरी १९५५ हीरालाल जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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