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________________ [४३ ४, २, ५, २१.] वेयणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे समितं वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव पंचिंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी जादा त्ति' । एत्थ वि गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । __पुणो पंचिंदियलद्धिअपज्जत्तजहण्णागाहणं घेत्तूण पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव सुहुमणिगोदणिवत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी जादा ति । एत्थ गुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभागो। कुदो ? बादरादो सुहुमस्स ओगाहणागुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभागो त्ति सुत्तणिदेसादो । पुणो मुहुमणिगोदणिवीत्तपज्जत्तयस्स जहण्णागाहणं घेत्तण पदेसुत्तरादिकमेण आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्तं वड्ढावेदव्वं । एवं वढिदूण विदओगाहणाए सुहुमणिगोदणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्करसोगाहणा सरिसा हादि । पुणो पुबिल्लं मोत्तूण इमं घेतूण पदेसुत्तरादिकमेण एवं चेव ओगाहणमावलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदेगखंडमेत्तं जाव अहियं होदि ताव वड्ढावेदव्वं । एवं यड्डिदूण विदओगाहणा सुहुमणिगोदणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणाए सरिसा होदि । पुणो एदमोगाहणं पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव सुहुमवाउक्काइयणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणं पत्तं ति । पुणो एत्थ गुणगारो आवलियाए उसको छोड़कर और इसको ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । यहांपर भी गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । कारण इसका पहिलेके ही समान कहना चाहिये । ___ तत्पश्चात् पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाको ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा सूक्ष्म निगोद जीव निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । यहां गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, बादरसे सूक्ष्मका अवगाहनागुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है, ऐसा सूत्रमें निदिष्ट है। अब सूक्ष्म निगोद जीब निवृत्ति पर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाको ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि ऋमसे आवल के असंख्यातवे भागसे खण्डित करनेपर उसमेस एक खण्ड प्रमाण बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़कर स्थित 3 सूक्ष्म निगोद निवृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके सदृश होती है । पश्चात् पूर्व अवगाहनाको छोडकर और इसको ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे इसी अवगाहनाको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित कर उसमेंसे एक खण्ड प्रमाण जब तक वह आधक न हो जाये तब तक बढ़ाना इस प्रकार बढ़कर स्थित अवगाहना सूक्ष्म निगोद निवृत्तिपर्याप्तक जीवकी उत्कृष्ट अवगाहनाके समान होती है । फिर इस अवगाहनाको एक प्रदेश आधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा सूक्ष्म वायुकायिक निवृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिये । परन्तु यहां गुणकार आवलीका असंख्यांतवां भाग . पंचेन्द्रियलमध्यपर्याप्तसम्बन्धी प्रबन्धोऽयं ताप्रती पुनलिखितः। २ 'पुणो पंचिंदियलद्धिअपज्जत्तजहण्णो. गाहणं घेत्तूण' इत्येतस्य स्थाने ताप्रती 'तं मोत्तूण इमं घेत्तण' इति पाठः। ३ क्षेत्रविधान ९७.४ प्रतिषु 'एवमोगाहणं' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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