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________________ ४२] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ५, २१. तं मोत्तण इमं घेत्तूण पदेसुत्तरादिकमेण चहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव बादरणिगोदलद्धिअपज्जत्तजहण्णोगाहणाए सरिसी जादा त्ति । पुणो तं मोत्तूण इमं घेत्तूण पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव णिगोदपदिहिदलीद्धअपज्जत्तजहण्णागाहणाए सरिसी जादा ति। तं मोत्तूण इमं घेत्तूण पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्डमवेदध्वं जाव बादरवणप्फदिकाइयपत्तयसरीरलद्धिअपज्जत्तजहण्णोगाहणाए सरिसी जादा ति । एत्थ वि गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागो। कारणं पुवं व वत्तव्वं । 'तं मोत्तूण इमं घेत्तूण पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्ढावेदवं जाव बेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी जादा त्ति। एत्थ वि गुणगारो पलि दोवमरस असंखेज्जदिभागो। कारणं पुव्वं व वत्तव्यं । तं मोत्तूण इमं घेत्तूण पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव तेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी जादा त्ति । एत्थ वि गुणगारो पलिदोक्मरस असंखेज्जदिभागो । कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । तं मोतूण इमं घे तूण पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव चउरिदियलद्धिअपज्जतय स्स जहण्णोगाहणाए सरिसी जादात्ति। एत्थ वि गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । तं मोत्तूण इमं घेत्तूण पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि इसे ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्वियों द्वारा बादर निगोद लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । पश्चात् उसे छोड़कर और इसको ग्रहण करके प्रदेशाधिककमसे चार चडियोंके द्वारा निगोदप्रतिष्ठित लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये। अब उसको छोड़कर और इसको ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर लब्ध्यपर्याप्तकी जघन्य अवगाहनके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । यहां पर भी गुणकार पल योपमका असंख्यातवां भाग है। कारणका कथन पहिलेके ही समान करना चाहिये। अब उसको छोड़कर और इसको करके एक प्रदेश आधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । यहांपर भी गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । इसका कारण पहिलेके ही समान कहना चाहिये। अब उसको छोड़कर और इसको ग्रहण करके चार वृद्धियों द्वारा त्रीन्द्रिय लब्ध् यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये। यहांपर भी गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । कारण पहिलेके समान कहना चाहिये। अब उसको छोड़कर और इसे ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमले चार वृद्धियों द्वारा चतुरिन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये। यहांपर भी गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। कारण इसका पहिलेके ही समान कहना चाहिये । पश्चात् , द्वीन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तसम्बन्धी प्रबन्धोऽयं तापतौ [ ] एतत्को ष्ठकान्तर्गतो दर्शितः । २ चतुरिन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तसम्बन्धी प्रबन्धोऽयं तापतौ नोपलभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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