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________________ ४, २, ५, २१.] वेयणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे सामित्तं [४१ जादा त्ति । पुणो तं मोत्तूण सुहुमपुढविकाइयलद्धिअपज्जत्तजहण्णागाहणं घेत्तूण पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वडीहि वड्ढावेदव्वा जाव बादरवाउक्काइयलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी जादा ति । णवीर एत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। कुदो ? परत्थाणगुणगारादो । पुणो तं मोत्तूण बादरवाउक्काइयलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणं घेतूण पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव बादरतेउक्काइयलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी जादा त्ति । एत्थ वि गुणगारा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। कुदो? बादरादो बादरस्स ओगाहणागुणगारो' पलिदोवमस्स असंखज्जीदभागो त्ति सुत्तवयणादों । इमं मोत्तूण बादरतेउक्काइयलद्धिअपज्जत्तजहण्णोगाहणं घेत्तूण पदेसुत्तररादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव बादरआउक्काइयैलद्धिअपज्जत्तजहण्णागाहणाए सरिसी जादा ति । एत्थ वि गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । पुणो इमं मोत्तूण बादरआउक्काइयलद्धिअपज्जत्तजहण्णोगाहणं घेत्तूण पदेसुत्तररादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव बादरपुढविकाइयलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी जादा त्ति । पुणो बढ़ाना चाहिये । फिर उसको छोड़ करके और सूक्ष्म पृथिवीकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाको ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा बादर वायुकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सहश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । विशेष इतना है कि यहां गुणकार पत्योपमका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, वह परस्थानगुणकार है । फिर उसको छोड़कर और वायुकायिक लब्ध्य. पर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाको ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा बादर तेजकायिक लब्ध्य पर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये। यहां भी गुणकार पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है, क्योंकि, बादरसे बादर जीवकी अवगाहनाका गुणकार पल्योपमके असंख्यात भाग प्रमाण है, सूत्रवचन है। अब इसको छोड़कर और बादर तेजकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाको ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि फमसे चार वृद्धियों द्वारा बादर जल कायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । यहां भी गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। इसका कारण पहिलेके ही समान कहना चाहिये। पश्चात् इसको छोड़कर और बादर जलकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना को ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा बादर पृथिवीकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये। फिर उसको छोड़कर और १ ताप्रती 'बादरस्स गुणगारो' इति पाठः । २ क्षेत्रविधान ९८. सुहमेदरगुणगारो आवलि-पल्ला असंखमागो दु। सट्ठाणे सेटिगया अहिया तत्थेगपडिभागो ॥ गो. जी. १०१. ३ अ-काप्रत्योः 'वाउक्काइय', ताप्रतौ वा (आ) उ०' इति पाठः । ४ अ - काप्रत्योः ‘घेतूण', तापतौ 'घे (मो) तूण ' इति पाठः । छ. ११-६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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