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________________ छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ५, २१. तिस्से उवरि पदेसुत्तर-दुपदेसुत्तरादिकमेण एगजहण्णागाहणमत्तपदेसेसु वडिदेसु असंखेज्जगुणवड्डीए आदी संखेज्जगुणवड्डीए परिसमत्ती च होदि । तिस्से ओगाहणाए जहण्णोगाहणभागहारे जहण्णपरित्तासंखेज्जेण खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्तो भागहारो होदि । पुणो एत्तोप्पहुडि उवरि पदेसुत्तर-दुपदेसुत्तरादिकमेण असंखेज्जगुणवड्डीए गच्छमाणाए सुहुमणिगोदजहण्णोगाहणाए सुत्तमणिदआवलियाए असंखेज्जदिमागमेत्तगुणगारे पविढे सुहुमवाउकाइयलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी सुहुमणिगोदलद्धिअपज्जत्तयस्स अजहण्ण-अणुक्कस्सओगाहणा होदि । संपहि सुहुमणिगोदोगाहणं मोत्तूण वाउकाइयलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणं घेत्तूण पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वडीहिं बड्डावेदव्या जाव सुहुमतेउक्काइयलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी सहवाउबकाइयलद्धिअपज्जत्तयस्स अजहण्ण-अणक्करसओगाहणा जादाँ ति। पुणो तं मोत्तण इमं घेत्तूण पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि बड्डीहि वड्डावेदव्व जाव सुहुमआउक्काइयलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी जादा त्ति । पुणो तं मोत्तूण सुहुमआउक्काइयलीद्धअपज्जत्तयस्स जहह्मणोगाहणं घेत्तूण पदेसुत्तरादिकमेण चउहि वड्ढीहि वड्ढावेदव्या जाव सुहुमपुढविकाइयलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी उसके ऊपर एक प्रदेश अधिक दो प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे एक जघन्य अब. गाहना मात्र प्रदेशोंके बढ़ जानेपर असंख्यातगुणवृद्धिका प्रारम्भ और संख्यातगुणवृद्धिका अन्त होता है। उस अवगाहनाका भागहार, जघन्य अवगाहना लम्बन्धी भागहारको जघन्य परीतासंख्यातसे खण्डित करने पर उसमसे एक खण्डके बराबर होता है। पश्चात् यहांसे लेकर आगे एक प्रदेश अधिक दो प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे असंख्यातगुणवृद्धि के चालू रहनेपर सूक्ष्म निगोद जीवकी जघन्य अवगाहनामें सूत्रोक्त आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र गुणकारके प्रविष्ट हो जानेपर सूक्ष्म वायुकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश सूक्ष्म निगोद जीव लब्ध्यपर्याप्तककी अजघन्यअनुत्कृष्ट अवगाहना होती है। ___ अब सूक्ष्म निगोद जीवकी अवगाहनाको छोड़कर और सूक्ष्म वायुकायिक लब्धपपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाको ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा सूक्ष्म वायुकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी अजघन्य अनुत्कृष्ट अवगाहनाक सूक्ष्म तेजकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके समान हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । तत्पश्चात् उसको छोड़कर और इसे ग्रहण करके प्रदेश अधिक क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा सूक्ष्म जलकायिक लमध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये। फिर उसको छोड़कर और सूक्ष्म जलकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाको ग्रहण करके एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा सूक्ष्म पृथिवीकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक १ गो. जी. १०८-९. २ प्रतिषु 'भागहार' इति पाठः। ३ अ-काप्रत्योः 'जादो' इति पाटः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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