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________________ २४] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ५, १३. महामच्छो पुव्वविहिणा चेव मारणंतियसमुग्घादेण सत्तमपुढविं गदो तदियखेत्तस्स सामी । मुहम्मि चत्तारिआगासपदेसूणमहामच्छो मारणंतियसमुग्धादेण सादिरेयअट्ठमरज्जुआयदो चउत्थखेत्तस्स सामी । एवमेदेण कमेण महामच्छमुहपदेसे ऊणे करिय संखेज्जपदरंगुलमेत्ता अणुक्कस्सक्खेत्तवियप्पा उप्पादेदव्या । एत्थतणसव्वपच्छिमखेत्तं केण सरिसं होदि त्ति वुत्ते वुच्चदे - ओघुक्कस्सोगाहणमहामच्छस्स वेयणसमुग्घादेण तिगुणविक्खंभुस्सेहे गंतूण पदेसूणद्धट्ठमरज्जूण मुक्कमारणंतियस्स खेत्तेण सरिसं होदि । पुणो वि महामच्छमुहवियप्पे अस्सिदूण पदेसूणद्धट्ठमरज्जूणं मारणंतियं मल्लाविय संखेज्जपदरंगुलमेत्तखेत्ताणं सामित्तपरूवणा कायव्वा । एत्थ अंतिमक्खेत्तवियप्पो केण सरिसो होदि त्ति उत्ते, उच्चदे-- ओघुक्कस्सोगाहणामहामच्छस्स पुव्वविहाणेण दुपदेसूणद्धट्ठमरज्जूण मुक्कमारणंतियस्स खेत्तेण सरिसो। पुणो एदं मारणंतियखेत्तायामं धुवं कादूण महामच्छमुहवियप्पे अस्सिदूण संखेज्जपदरंगुलमेत्तखेत्ताणं सामित्तपरूवणं कायव्वं । पुणो एत्थ सव्वपच्छिमवियप्पो तिपदेसूर्णद्धट्ठमरज्जूणं मुक्कमारणंतियखेत्तेण सरिसो। आकाशप्रदेशोसे हीन मुखवाला महामत्स्य पूर्व विधिसे ही मारणान्तिकसमुद्घातसे सातवीं पृथिवीको प्राप्त होकर तृतीय अनुत्कृष्ट क्षेत्रका स्वामी होता है । मुखमें चार आकाशप्रदेशोंसे हीन महामत्स्य मारणान्तिकसमुद्घातसे साधिक साढ़े सात राजु मात्र आयामसे युक्त होता हुआ चतुर्थ अनुत्कृष्ट क्षेत्रका स्वामी होता है। इस प्रकार इस क्रमसे महामत्स्यके मुखप्रदेशोंको हीन करके संख्यात प्रतरांगुल प्रमाण अनुत्कृष्ट क्षेत्रके विकल्पोंको उत्पन्न कराना चाहिये। शंका-यहांका सबसे अन्तिम क्षेत्र किसके सदृश होता है ? समाधान- इस शंकाके उत्तरमें कहते हैं कि यह क्षेत्र सामान्योक्त उत्कृष्ट अवगाहनावाले और वेदनासमुद्घातसे तिगुणे विष्कम्भ व उत्सेधको प्राप्त होकर एक प्रदेश कम साढ़े सात राजु तक मारणान्तिकसमुद्घातको करनेवाले महामत्स्यक क्षेत्रके सदृश होता है। फिरसे भी महामत्स्यके मुख सम्बन्धी विकल्पोंका आश्रय करके प्रदेश कम साढ़े सात राजु तक मारणान्तिकसमुद्घातको छुड़ाकर संख्यात प्रतरांगुल प्रमाण क्षेत्रोंके स्वामित्वकी प्ररूपणा करना चाहिये। शंका-यहां अन्तिम विकल्प किसके सदृश होता है ? समाधान - इस प्रकार पूछनेपर उत्तर देते हैं कि वह क्षेत्र ओघोक्त उत्कृष्ट अवगाहनासे संयुक्त और पूर्व विधिके अनुसार दो प्रदेशोंसे हीन साढ़े सात राजु तक मारणान्तिकसमुद्घातको छोड़नेवाले महामत्स्यके क्षेत्रके सदृश होता है। फिर इस मारणान्तिकक्षेत्रके आयामको अवस्थित करके महामत्स्यके मुख. विकल्पोंका आश्रय कर संख्यात प्रतरांगुल मात्र क्षेत्रोंके स्वामित्वको प्ररूपणा करना चाहिये । यहां सबसे अन्तिम विकल्प तीन प्रदेश कम साढ़े सात राजु तक मारणान्तिक १ तापतौ - वियप्पो त्ति पदेसूण - ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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