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३३६] . . छक्खंडागमे वेयणाखंड ४, २, ६, २११. सहस्स हेटिमट्टिदिबंधट्टाणाणं सागारोवजोगेणेव बज्झमाणाणं संकिलेसस्स असुहत्तदंसणादो । दीसइ च सुहवजादिपाओग्गट्ठाणेहितो असुहपत्थरादिपाओग्गहाणाणमइबहुत्तं ।
मिस्सयाणि संखेज्जगुणाणि ॥ २११ ॥ - सागार-अणागारउवजोगाणं जाणि पाओग्गाणि सादबेटाणियजवमझादो हेडिमाणि हिदिबंधट्टाणाणि ताणि संखेजगुणाणि । कुदो ? हेडिमअज्झवसाणेहिंतो एदेसिमज्झवसाणाणं असुहत्तुवलंभादो । मोक्खकारणादो संसारकारणेण बहुएण होदव्वं, अण्णहा देवमणुस्सहिंतो तिरिक्खाणमणंतगुणत्ताणुववत्तीदो। . ... सादस्स चेव बिट्टाणियजवमज्झस्स उवरि मिस्सयाणि संखेज्जगुणाणि ॥ २१२॥ - ... कारणं हेटिमअज्झवसाणेहिंतो उवरिमअज्झवसाणाणं सुठ्ठ असुहत्तं ।
असादस्स बिट्ठाणियजवमज्झस्स हेट्टदो एयंतसायारपाओग्गट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥ २१३ ॥ स्थानों के संक्लेशको अपेक्षा साता वेदनीयके विस्थानिक यवमध्यके नीचेके साकार उपयोगसे बंधनेवाले स्थितिबन्धस्थानोंका संक्लेशन अशुभ देखा जाता है । वज्र आदिके योग्य शुभ स्थानोंकी अपेक्षा अशुभ पत्थर आदिके योग्य स्थान अत्यन्त बहुत देखे
मिश्र स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ २११॥ ...
साकार व अनाकार उपयोगके योग्य जो साता घेदनीयके विस्थानिक यवमध्यके नीचके स्थितिबन्धस्थान हैं वे संख्यातगुणे हैं, क्योंकि नीचेके अध्यवसानोंकी अपेक्षा ये भध्यवसान अशुभ देने जाते हैं। मोक्षके कारणकी अपेक्षा संसारका कारण बहुत होना चाहिये, क्योंकि, अन्यथा देख और मनुष्योंकी अपेक्षा तिर्यचोंका अनन्तगुणत्व बन महीं सकता।
साताके ही द्विस्थानिक यवमध्यके ऊपर मिश्र स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं॥२१२॥ । इसका कारण अघस्तन अध्यवसानोंकी अपेक्षा उपरिम अध्यवसानोंका अत्यन्त
असाताके विस्थानिक यवमध्यके नीचे एकान्ततः साकार उपयोगके योग्य स्थान संख्यातगुणे हैं ॥ २१३॥
१ताप्रतो'वज्जदि इति पाठः । २ तेभ्योपि द्विस्थानकरसयवमध्यादधः पाश्चात्येभ्य ऊध्ये स्थितिस्थानानि मिश्राणि साकारानाकारोपयोगयोग्यानि संख्येयगुणानि ६। क.प्र. (म.टी.) १,९७. । ३. अप्रतो 'सादरसेव' इति पाठः। ४ तेभ्योऽपि द्विस्थानकरसयवमध्यस्योपरि मिश्राणि स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि ७क. प्र. १,९८.। ५ ताप्रतौ 'असंखेज्जगुणानि इति पाठः। ततोऽप्यशुभपरावर्तमानप्रकृतीनामेव द्विस्थानकरसयवमध्यादध एकान्तसाकारोपयोगयोग्यानि स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि १० । क. प्र. (म.टी.) १,९९ ।
भीमातह
होना है।
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