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________________ ४, २, ६, १२०. ] · वेयणमहाहियारे वेयणकाल विहाणे णिसेयपरूवणां पाडिय बिदिअद्धस्वरि ठविदे तिण्णिगुणहाणीयो होंति । अधवा, दिवडगुणहाणीयो ठवेण एगगुणहाणि चडिय इच्छामो त्ति एगरूवं विरलिय बिगं करिय अण्णोन्मत्थे क उपरासिणा दिवगुणहाणीए गुणिदाए तिष्णिगुणहाणीयो होंति । २४ । पुणो दाहि सव्वदव्वे भागे हिदे बिदियगुणहाणीए पढमणिसेगो आगच्छदि । पुणो तिस्से चेव बिदियणिसेगपमाणेण सव्वदव्वं सादिरेयतिण्णिगुणहाणिट्ठाणंतरेण काले अवहिरिदि । तं जहा -- ८ । १५ । १ । ८ । २४ रूवूणणिसेयभागहारमेत्तगोच्छविसेसे घेत्तू जदि एगपक्खेवसलागा लब्भदि तो तिण्णिगुणहाणिमेत्तगोवुच्छविसेसेहिंतो केवडियाओ पक्खेवसलागाओ लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए एत्तियं होदि ८ । ५ । पुणो एदम्मि सरिसच्छेदं कादृण तिसुं गुणहाणीसु पक्खित्ते एत्तियं होदि १२८ । ५ । पुणो एदेण सव्वदव्वे भागे हिदे बिदियणिसेयो आगच्छदि । एवं [ दव्वं ] जाव विदियगुणहाणीए अद्धं गदं ति । तदो तणिसेयपमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिजमाणे चत्तारिगुणहाणिट्ठाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि । तं जहा — तिणिगुणहाणि - क्खेत्तं ठविय पुव्वं व चत्तारिफालीयो कादूण तत्थ तीहि फालीहि तदित्थणिसेओ होदि त्ति चउत्थफाली अधिया होदि । पुणो इममहियफालिं तप्पमाणेण कस्सामो-- ८ । १२ । २६३ भागसे फाड़कर द्वितीय अर्ध भागके ऊपर रखनेपर तीन गुणहानियां होती हैं । अथवा, डेढ़ गुणहानियोंको स्थापित करके चूंकि एक गुणहानि चढ़े हैं, अतः एक रूपका विरलन करके द्विगुणित कर परस्परमें गुणित करनेपर उत्पन्न राशिसे डेढ़ गुणहानिको गुणित करनेपर तीन गुणहानियां (२४) होती हैं । अब इनका सब द्रव्य में भाग देनेपर द्वितीय गुणहानिका प्रथम निषेक आता है । उसी (द्वितीय) गुणहानिके द्वितीय निषेकके प्रमाणसे सब द्रव्य साधिक तीन गुणहानिस्थानान्तर कालसे अपहृत होता है । यथा - एक कम निषेकभागहार प्रमाण गोपुच्छविशेषोंको ग्रहणकर यदि एक प्रक्षेपशलाका प्राप्त है, तो तीन गुणहानि मात्र गोपुच्छविशेषोंसे कितनी प्रक्षेपशलाकायें प्राप्त होंगी ? इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करने पर इतना होता है - २१६ | अब इसको समच्छेद करके तीन गुणहानियोंमें मिलानेपर इतना होता है - २४+६= 23 | इसका सब द्रव्यमें भाग देनेपर द्वितीय निषेक आता है - ३०७२÷१६ = १२० । इस प्रकार द्वितीय गुणहानिका अर्ध भाग समाप्त होने - तक ले जाना चाहिये । 1 पश्चात् उसके आगेके निषेकप्रमाणसे सब द्रव्यको अपहृत करनेपर वह चार गुणद्दानिस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है । यथा- तीन गुणहानि मात्र क्षेत्रको स्थापित कर पूर्वके ही समान चार फालियां करके उनमेंसे तीन फालियोंसे वहांका निषेक होता है । अतः चतुर्थ फालि अधिक है । अब इस अधिक फालिको उसके प्रमाणसे करते हैं १ अप्रतौ संदृष्टिरियमग्रे ' - भागहारमेत्त' इत्यतः पश्चादुपलभ्यते । २ ताप्रतौ ' ती ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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