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________________ २६४ छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, १२.. १।८। ४ । २४ । णिसेगभागहारतिण्णि-चदुब्भागमेत्तगोवुच्छविसेसे घेत्तूण जदि एगो तदित्यणिसेगो लब्भदि तो एगफालिमत्तगोवुच्छविसेसेसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए एत्तियं होदि ८ । पुणो एदम्मि तिहुँ गुणहाणीसु पक्खित्ते चत्तारिगुणहाणीयो होति ३२ । पुणो एदेण सव्वदव्वे भागे हिदे तदित्थणिसेयो होदि । एवं जाणिदूण णेयव्वं जाव बिदियगुणहाणिचरिमणिसेयो ति। पुणो तदियगुणहाणिपढमणिसेयपमाणेण अवहिरिजमाणे छगुणहाणिहाणंतरपमाणेण अवहिरिजदि । तं जहा-तिण्णिगुणहाणिक्खेत्ते मज्झे पाडिय एगअद्धस्सुवरि बिदियअद्धे जोएदूण हविदे छगुणहाणीयो होति । अधवा, बेगुणहाणीओ चडिदाओ त्ति बे स्वे विरलिय विगं करिय अण्णोण्णभत्थे कदे चत्तारि रुवाणि उप्पाजंति । पुणो तेहि दिवड्डगुणहाणीए गुणिदाए भागहारो छगुणहाणिमेत्तो होदि ४८ । पुणो एदाहि सव्वदव्वे भागे हिदे इच्छिदणिसेयो आगच्छदि । पुणो तिस्से गुणहाणीए बिदियणिसेयपमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिजमाणे सादिरेयछगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि । एत्थ तेरासियकमेण लद्धपक्खेवरूवाणि ४८ । १५ । पुणो एदम्मि सरिसछेदं कादूण छसु गुणहाणीसु पक्खित्ते सादिरेयछगुणनिषेकभागहारके तीन चतुर्थ भाग मात्र गोपुच्छविशेषों को ग्रहण कर यदि वहांका एक निषेक प्राप्त होता है, तो एक फालि मात्र गोपुच्छविशेषोंमें क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर इतना होता है-८। इसको तीन गुणहानियों में मिलानेपर चार गुणहानियां होती हैं-२४+८=३२ । इसका सब द्रव्यमें भाग देनेपर वहांका (द्वि० गु० हा० का पांचवां ) निषेक होता है-३०७२-३२१६। इस प्रकार जानकर द्वितीय गुणहानिके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिये। , तृतीय गुणहानि सम्बन्धी प्रथम निषेकके प्रमाणसे सब द्रब्यको अपहृत करनेपर बह छह-गुणहानिस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है । यथा-तीन गुणहानि प्रमाण क्षेत्रको मध्यमें फाड़कर एक अर्ध भागके ऊपर द्वितीय अर्ध भागको जोड़कर स्थापित करनेपर छह गुणहानियां होती हैं। अथवा, चूंकि दो गुणहानियां चढे हैं अतः दो अंकोंका विरलन करके दुगुणा कर परस्पर गुणित करनेपर चार अंक उत्पन्न होते हैं । पश्चात् उनके द्वारा डेढ़ गुणहानियोंको गुणित करनेपर भागहार छह गुणहानि प्रमाण होता है-१२४४-४८ =८४६ । इनका सब द्रव्यमें भाग देनेपर अभीष्ट निषेक प्राप्त होता है-२०७२:४८६४। . ___ उक्त गुणहानिके द्वितीय निषेकके प्रमाणसे सब द्रव्यको अपहृत करनेपर वह साधिक छह गुणहानिस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है। यहां त्रैराशिकक्रमसे प्राप्त प्रक्षेप अंक ये हैं-१६। इनको समच्छेद करके छह गुणहानियोंमें मिलाने पर साधिक १ ताप्रतौ ' तीसु' इति पाठः। २ अ-आ-ताप्रतिषु ' सव्वदव्वेण ' इति पाठः। ३ प्रतिषु 'लोएदूण' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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