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________________ छक्खंडागमे वैयणाखंड [१, २, ५, १. तत्थ खेत्तं चउन्विहं णामखेत्तं एवणखेत्तं दवखेत्तं भावखेत्तं चेदि । तत्थ णामट्ठवणखेत्ताणि सुगमाणि । दव्वखेत्तं दुविहमागम-णोआगमदव्ववेत्तभेएण । तत्थ आगमदवखेतं णाम खेत्तपाहुडजाणगो अणुवजुत्तो । णोआगमदव्वखत्तं तिविहं जाणुगसरीर-भवियतव्वदिरित्तभेदेण । तत्थ जाणुगसरीर-भवियणोआगमदव्वखेत्ताणि सुगमाणि । तव्वदिरित्त'णोआगमखेत्तमागासं। तं दुविहं लोगागासमलोगागासमिदि । तत्थ-लोक्यन्ते उपलभ्यन्ते यस्मिन् जीवादयः पदार्थाः स लोकस्तद्विपरीतस्त्वलोकः । कधभागासस्स खेत्तववएसो १ क्षीयन्ति निवसन्त्यस्मिन् जीवादय इति आकाशस्य क्षेत्रत्वोपपत्तेः । भावखेत्तं दुविहं आगम-णोआगमभावखेत्तभेएण । तत्थ खत्तपाहुडजाणगो उवजुत्तो आगमभावखेत्तं । सव्वदव्वाणमप्पप्पणो भावो णोआगमभावखेत्तं । कधं भावस्स खेत्तववएसो १ तत्थ सव्वव्वावट्ठाणाद।।। एत्थ णोआगमदव्वखेत्तेण अहियारो। अट्टविहकम्मदव्वस्स वेयणे त्ति सण्णा। वेयणाए खेत्तं वेयणाखेत्तं, वेयणाखेत्तस्स विहाणं वेयणाखेत्तविहाणमिदि पंचमस्स अणिओगद्दारस्य गुणणाम । इदिसद्दो ववच्छेदफलो । तत्थ वेयणखेत्तविहाणे इमाणि तिण्णि अणिओगद्दाराणि क्षेत्र चार प्रकार है- नामक्षेत्र, स्थापनाक्षेत्र, द्रव्यक्षेत्र और भावक्षेत्र । उनमें नामक्षेत्र और स्थापनाक्षेत्र सुगम हैं । द्रव्यक्षेत्र आगम और नोआगम द्रव्यक्षेत्रके भेदसे दो प्रकार है। उनमें क्षेत्रपाभृतका जानकार उपयोग रहित जीव आगमदव्यक्षेत्र कहलाता है। नोआगमद्रव्यक्षेत्र ज्ञायकशरीर, भावी और तदव्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकार है। उनमें शायकशरीर और भावी नोआगमद्रव्यक्षेत्र सुगम हैं । तद्: व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्य क्षेत्र आकाश है। वह दो प्रकार है - लोकाकाश और अलोकाकाश। इनमें जहां जीवादिक पदार्थ देखे जाते हैं या जाने जाते हैं यह लोक है। उससे विपरीत अलोक है। शंका- आकाशकी क्षेत्र संशा कैसे है ? समाधान- 'क्षीयन्ति अस्मिन् ' अर्थात् जिसमें जीवादिक रहते हैं वह अकाश है, इस निरुक्तिके अनुसार अकाशको क्षेत्र कहना उचित ही है। भावक्षेत्र आगम और नोआगम भावक्षेत्रके भेदसे दो प्रकार है। उनमें क्षेत्र प्राभृतका जानकार उपयोग युक्त जीव आगमभावक्षेत्र है। सब द्रव्योंका अपना अपना भाव नोभागमभावक्षेत्र कहलाता है। शंका-भावकी क्षेत्र संज्ञा कैसे हो सकती है ? . समाधान- उसमें सब द्रव्योंका अवस्थान होनेसे भावकी क्षेत्र संशा बन जाती है। यहाँ नोआगमद्रव्यक्षेत्रका अधिकार है। आठ प्रकारके कर्मद्रव्यकी वेदना संज्ञा है । वेदनाका क्षेत्र वेदनाक्षेत्र, घेदनाक्षेत्रका विधान वेदनाक्षेत्रविधान । यह पांचर्षे अनुयोगद्वारका गुणनाम है। सूत्र में स्थित 'इति' शब्द व्यवच्छेद करनेवाला है। उस वेदनाक्षेत्रविधानमें ये तीन अनुयोगद्वार हैं। १ प्रतिषु तध्वदिरित्त वि-' ताप्रतौ 'तव्वदिरित्त [म] वि' इति पाठः । २ प्रतिघु '-दव्वस्स कम्मवेयणा चि' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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