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________________ (सिरि-भगवंत-पुप्फदंत-भूदबाले-पणीदो छक्खंडागमो सिरि-वीर सेणाइरिय- विरइय-धवला टीका-समणिदो तस्स चउत्थे खंडे वेयणाए वेदणाखेत्तविहाणाणिओगद्दारं ) वेयणखेत्तविहाणेत्ति तत्थ इमाणि तिण्णि अणिओगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति ॥ १॥ वेदणाणिक्खित्तल्लिया खेत्तं णिक्खिविदव्वं । किमट्ठे खेत्तणिक्खेिवो कीरदे ? अवगद खेत्तद्वाणपडिसेहूं कादूण पयदखेत्तट्टपरूवणङ्कं । उक्तं च Jain Education International अवगणिवारणङ्कं पयदस्स परूवणाणिमित्तं च । संसयविणासणङ्कं तच्चत्थवहारणटुं च ॥ १ ॥ वेदना निक्षेपविधान यह जो अनुयोगद्वार है उसमें ये तीन अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं ॥ १ ॥ वेदना में निक्षिप्त क्षेत्रका यहां निक्षेप करना चाहिये । शंका - क्षेत्रका निक्षेप किसलिये करते हैं ? समाधान - अप्रकृत क्षेत्रस्थानका प्रतिषेध करके प्रकृत क्षेत्रकी अर्थप्ररूपणा करनेके लिये क्षेत्रका निक्षेप करते हैं। कहा भी है अप्रकृतका निवारण करनेके लिये, प्रकृतकी प्ररूपणा करनेके लिये, संशयको नष्ट करने के लिये, और तत्त्वार्थका निश्चय करनेके लिये निक्षेप किया जाता है ॥ १ ॥ रु. ११-१. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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