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________________ ४, २, ६, ५२.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्टाणपरूवणा [२१५ हाणीणं सव्वझवसाणपुंजो असंखेजगुणो होदि, ख्वाहियजहण्णपरित्तासंखेज्जेण जहण्णपरित्तासंखेजयस्स वग्गे भागे हिदे ख्वाहियजहण्णपरित्तासंखेन्जेण एगरूवं खंडिय तत्थ एगखंडेणब्भहियउक्कस्ससंखेजमेत्तरूवुवलंभादो । पुणो पढमखंडसव्वगुणहाणिसव्वज्झवसाणपुंजादो चउत्थखंडसव्वज्झवसाणपुंजो जहण्णपरित्तासंखेजघणगुणो होदि, तिणिजहण्णपरित्तासंखेजछेदणए विरलिय विगं. करिय अण्णोण्णभत्थे कदे तिप्पदुप्पणपरित्तासंखेज्जुवलंभादो । बिदियखंडज्झवसाणेहिंतो जहण्णपरित्तासंखेजवग्गगुणो होदि, दुगुणिदजहण्णपरित्तासंखेजछेदणए विरलिय विगं करिय अण्णोभत्थे कदे जहण्णपरित्तासंखेजवरगुप्पत्तीदो । तदियखंडझवसाणेहिंतो जहण्णपरित्तासंखेज्जगुणो, एगजहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेत्तगुणहाणीयो उवरि चडिदूण अवठ्ठाणादो । हेट्ठिमतिण्णिखंडसव्वगुणहाणिसव्वज्झवसाणपुंजादो उवरिमचउत्थखण्डज्झवसाणपुंजो असंखेजगुणो होदि, जहण्णपरित्तासंखेज्जवग्गेण रूवाहियजहण्णपरित्तासंखजब्भहिएण जहण्णपरित्तासंखेजघणे भागे हिंदे एदेण भागहारेण एगरूवं खंडिय तत्थ एगखंडेणब्भहियउक्कस्ससंखेजमेत्तरूवुवलंभादो। स्थानोंसे तृतीय खण्ड सम्बन्धी गुणहानियों का समस्त अध्यवसानपुंज असंख्यातगुणा है, क्योंकि, एक अधिक जघन्य परोतासंख्यातका जघन्य परीतासंख्यातके वर्गमें भाग देनेपर एक अधिक जघन्य परीतासंख्यातसे एक अंकको खण्डित करनेपर प्राप्त हुए एक भागसे अधिक उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण अंक पाये जाते हैं। प्रथम खण्ड सम्बन्धी सब गुणहानियोंके समस्त अध्यवसानपुंजसे चतुर्थ खण्ड सम्बन्धी समस्त अध्यवसानपुंज जघन्य परीतासंख्यातका घन करनेपर जो प्राप्त हो उतना गुणा है, क्योंकि, तीन जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेदोंका विरलन करके दुगुणा कर परस्पर गुणा करनेपर तीन वार उत्पन्न परीतासंख्यात अर्थात् उसका घन पाया जाता है। द्वितीय खण्डकी सब गुणहानियोंके परिणामोंकी अपेक्षा चतुर्थ खण्डका सब परिणामपुंज जघन्य परीतासंख्यातका वर्ग करनेपर जो प्राप्त हो उससे गुणित है, क्योंकि, दो जघन्य परीता. संख्यातके दुगुणे अर्धच्छेदोंका विरलन करके द्विगुणित कर परस्पर गुणा करनेपर जघन्य परीतासंख्यातका वर्ग उत्पन्न होता है। तृतीय खण्डके परिणामोंकी अपेक्षा चतुर्थ खण्डका सब परिणामपुंज जघन्य परीतासंख्यातगुणा है, क्योंकि, एक जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेदोंके बराबर गुणहानियाँ ऊपर जाकर उसका अवस्थान है । अधस्तन तीन खण्ड सम्बन्धी समस्त गुणहानियोंके सब परिणामपुंजकी अपेक्षा आगेका चतुर्थ खण्ड सम्बन्धी परिणामपुंज असंख्यातगुणा है, क्योंकि, एक अधिक जघन्य परीतासंख्यातसे अधिक जघन्य परीतासंख्यातके वर्गका जघन्य परीतासंख्यातके घनमें भाग देनेपर इस भागहारसे एक अंकको खण्डित करनेपर लब्ध हुए एक खण्डसे अधिक उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण अंक पाये जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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