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________________ २१४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, ५२. हिट्ठाणपुंजो रूवूणविरलणगुणिदजहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेत्तहेटिमगुणहाणीणं सव्वझवसाणपुंजादो असंखेजगुणो, विसेसाहियउक्कस्ससंखेजगुणगारदसणादो । कधमेदं णव्वदे ? जुत्तीदो । तं जहा—पढमजहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेत्तगुणहाणीणं सव्वज्झवसाणपुंजादो बिदियजहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेत्तगुणहाणीणं सवटिदिबंधज्झवसाणहाणाणि जहण्णपरित्तासंखेजगुणाणि, हेट्ठिमपढमादिगुणहाणिअज्झवसाणपुंजादो उवरिमपढमादिगुणहाणिअज्झवसाणपुंजस्स पुध पुध जहण्णपरित्तासंखेजगुणत्तुवलंभादो। तदियजहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेत्तगुणहाणीणं सव्वज्झवसाणपुंजो पढमजहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेत्तगुणहाणीणं सव्वज्झवसाणपुंजादो जहण्णपरित्तासंखेजवग्गगुणो होदि, जहण्णपरित्तासंखेजछेदणए दुगुणिय विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थे कदे जहण्णपरित्तासंखेजवरगुप्पत्तीदो । बिदियजहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेत्तगुणहाणीणं सव्वज्झवसाणपुंजादो जहण्णपरित्तासंखेज्जगुणो होदि, हेटिमट्ठिदिपरिणामेहिंतो उवरिमट्ठिदिपरिणामाणं पुध पुध जहण्णपरित्तासंखेजगुणत्तुवलंभादो । पुणो हेटिमदोखंडगुणहाणीणं सन्वझवसाणेहिंतो. तदियखंडगुण परीतासंख्यातके अर्धच्छेदोंके बराबर अधस्तन गुणहानियोंके समस्त अध्यवसानपुंजसे असंख्यातगुणा है, क्योंकि, यहाँ गुणकार उत्कृष्ट संख्यातसे विशेष अधिक देखा जाता है। - शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-वह युक्तिसे जाना जाता है । यथा-जघन्य पीतासंख्यातके प्रथम अर्घच्छेदके बराबर गुणहानियोंके समस्त अध्यवसानपुंजकी अपेक्षा जघन्य परीतासंख्यातके द्वितीय अर्धच्छेदके बराबर गुणहानियोंके समस्त स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान जघन्यपरीतासंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, अधस्तन प्रथमादिक गुणहानियोंके अध्यवसान पुंजकी अपेक्षा आगेकी प्रथमादिक गुणहानियोंका अध्यवसानपुंज पृथक् पृथक् जघन्य-परीतासंख्यातगुणा पाया जाता है । जघन्य परीता-संख्यातके तृतीय अर्घच्छेदके बराबर गुणहानियों का समस्त अध्यवसानपुंज जघन्य परीतासंख्यातके प्रथम अर्घच्छेदके बराबर गुणहानियोंके समस्त अध्यवसानपुंजकी अपेक्षा जघन्य परीतासंख्यातके वर्गका जो प्रमाण हो उससे गुणित है, क्योंकि, जघन्य परीतासंख्यातके अर्द्धच्छेदोंको दुगुणित करने पर जो प्राप्त हो उसका विरलन करके दूनाकर परस्पर गुणित करनेपर जघन्य परीतासंख्यातका वर्ग उत्पन्न होता है । जघन्य परोतासंख्यातके द्वितीय अर्घच्छेदके बराबर गुणहानियोंके समस्त अध्यवसानपुंजकी अपेक्षा [ जघन्य परीतासंख्यातके तृतीय अर्धच्छेद मात्र गुणहानियोंका समस्त अध्यवसानपुंज ] जघन्य-परीतासंख्यातगुणा है, क्योंकि, अधस्तन स्थितियोंके परिणामोंसे उपरिम स्थितियोंके परिणाम पृथक् पृथक् जघन्य-परीतासंख्यातगुणे पाये जाते हैं । पुनः अधरतन दो खण्ड सम्बन्धी गुणहानियोंके समस्त अध्यवसान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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