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४, २, ६, ५२. ] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणारूवणा [२१३ जहण्णपरित्तासंखेजगुणो, पढमगुणहाणीए एगेगहिदिबंधटाणसंकिलेस-विसोहीहिंतो अप्पिदगुणहाणीए पढमादिहिदिबंधट्टाणसंकिलेस-विसोहिहाणाणं जहाकमेण जहण्णपरित्तासंखेजगुणमेत्तगुणगारुवलंभादो। एवमुवरिं पि जाणिदृण गुणगारो साहेयव्वो। एवं संदिडिं ठविय एदिस्से अवटुंभंबलेण सुहुमेइंदियअपजत्तसंकिलेस-विसोहिहाणेहिंतो बादरेइंदियअपजत्तसंकिलेसविसोहिट्ठाणाणमसंखेजगुणत्तं भण्णदे । तं जहा-बादरेइंदियअपज्जत्तणाणागुणहाणिसलागाओ जहण्णपरित्तासंखेज्जछेदणएहि ओवट्टिय लद्धं विरलेयूण णाणागुणहाणिसलागाओ समखंडं करिय दिण्णे एवं पडि जहण्णपरित्तासंखेजच्छेदणाओ पावेंति । एत्थ चरिमजहण्णपरित्तासंखेजच्छेदणयमेत्तगुणहाणीणं सव्वसंकिलेस-विसो
समाधान-यह कोई, दोष नहीं है, क्योंकि, यतः अधस्तन गुणहानि सम्बन्धी जघन्य स्थानके परिणामोंसे आगेकी अव्यवहित गुणहानिके जघन्य परिणाम दूने हैं, अधस्तन गुणहानि सम्बन्धी द्वितीय स्थानके परिणामोंकी अपेक्षा आगेकी गुणहानिके द्वितीय स्थान सम्बन्धी परिणाम दूने हैं, अधस्तन गुणहानि सम्बन्धी तृतीय स्थानके परिणामोंसे अग्रिम गुणहानि सम्बन्धी तृतीय स्थानके परिणाम दूने हैं, इस प्रकार दो गुणहानियों के अन्तिम स्थितिबन्धस्थान तक ले जाना चाहिये। इसी कारण अधस्तन गुणहानि सम्बन्धी समस्त संक्लेश-विशुद्धिस्थानोंकी अपेक्षा उससे अव्यवहित आगेकी गुणहानि सम्बन्धी संक्लेश-विशुद्धिस्थानोंके दृने होनेमें कोई विरोध नहीं है।
प्रथम गुणहानि सम्बन्धी समस्त अध्यवसानपुंजसे तृतीय गुणहानि सम्बन्धी समस्त अध्यवसानपुंज चौगुणा है । यहाँ भी पहिलेके ही समान कारण बतलाना चाहिये । उससे चतुर्थ गुणहानि सम्बन्धी समस्त अध्यवसानपुंज अठगुणा है । यहाँ भी पहिलेके ही समान कारण बतलाना चाहिये । इस प्रकार जाते हुए जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेदोंके बराबर गुणहानियाँ आगे जाकर स्थित गुणहानि सम्बन्धी समस्त अध्यवसानपुंज प्रथम गुणहानि सम्बन्धी समस्त अध्यवसानपुंजसे जघन्य-परीतासंख्यातगुणा है, क्योंकि, प्रथम गुणहानि सम्बन्धी एक एक स्थितिबन्धस्थानके संक्लेश-विशुद्धिस्थानोंसे विवक्षित गुणहानि सम्बन्धी प्रथमादिक स्थितिबन्धस्थानके संक्लेश-विशुद्धिस्थानोंका गुणकार क्रमशः जघन्य परीतासंख्यातगुणा मात्र पाया जाता है । इसी प्रकार आगे भी जानकर गुणकारका कथन करना चाहिये।
इस प्रकार उपर्युक्त संदृष्टिको स्थापितकर उसके आश्रयसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तके संक्लेश-विशुद्धिस्थानोंकी अपेक्षा बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तके संश्लेश विशुद्धिस्थानोंका असंख्यातगुगत्व बतलाया जाता है ? यथा-बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकी नानागुणहानिशलाकाओं में जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेदोंका भाग देकर जो प्राप्त हो उसका विरलन कर नानागुणहानिशलाकाओंको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति जघन्य-परीतासंख्यातके अर्धच्छेद प्राप्त होते हैं । यहाँ जघन्य-परीतासंख्दातके अन्तिम अर्धच्छेद प्रमाण गुणहानियोंका समस्त संक्लेश-विशुद्धिस्थानपुंज एक कम विरलन राशिसे गुणित जघन्य
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