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________________ ४, २, ६, ५१.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा [ २०७ पलिदोवमस्स असंखञ्जदिभागमेत्तो । एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सटिदिसंकिलेसट्टाणाणि त्ति । एवमणंतरोवणिधा गदा। परंपरोवणिधाए जहण्णाटिदिसंकिलेसट्ठाणेहिंतो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागमेत्तद्धाणं गंतृण दुगुणवड्डी होदि । पुणो वि एत्तियमद्धाणमुवरि गंतूण चदुग्गुणवडी होदि । एवं णेयव्वं जाव उक्कस्सहिदीए संकिलेसहाणाणि त्ति । एत्थ णाणागुणहाणिसलागाओ थोवाओ । एगगुणहाणिहाणंतरमसंखेजगुणं । एवं विसोहिट्ठाणाणं पि सेडिपख्वणं विवरीदकमेण कायव्वं, उक्कस्सहिदिपरिणामेहिंतो हेट्ठिम-हेट्ठिमहिदिपरिणामाणं विसेसाहियत्तुवलंभादो । एवं सेडिपरूवणा गदा।। अवहारो उच्चदे । तं जहा-सव्वसंकिलेसट्ठाणाणि जहण्णटिदिसंकिलेसपमाणेण अवहिरिजमाणे केवचिरेण कालेण अवहिरिजति ? असंखेज्जेण कालेण अवहिरिज्जति । एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सियाए हिदीए संकिलेसटाणाणि त्ति । एवं विसोहिहाणाणं पि वत्तव्यं । अवहारो गदो।। ___ जहण्णियाए हिदीए संकिलेसटाणाणि सव्वसंकिलेसट्टाणाणं केवडिओ भागो ? असंखेजदिभागो । एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सियाए हिदीए संकिलेसटाणा णि त्ति । एवं विसोहिहाणाणं' भागाभागपख्वणा कायव्वा । एवं भागाभागपवणा गदा । अधिक हैं । यहां प्रतिभाग पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके संक्लेशस्थानों तक ले जाना चाहिये । इस प्रकार अनन्तरोपनिधा समाप्त हुई। परम्परोपनिधासे जघाय स्थितिके संक्लेशस्थानोंकी अपेक्षा पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र अध्धान जाकर दुगुणी वृद्धि होती है । फिर भी इतना मात्र अध्यान आगे जाकर चतुर्गुणी वृद्धि होती है । इस क्रमसे उत्कृष्ट स्थितिके संक्लेशस्थानों तक ले जाना चाहिये । यहां नाना गुणहानिशलाकायें स्तोक हैं। एक गुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है। इसी प्रकार विशुद्धिस्थानोंकी भी श्रेणिप्ररूपणा विपरीत क्रमसे करना चाहिये, क्योंकि, उत्कृष्ट स्थितिके संक्लेशस्थानोंकी अपेक्षा नीचे नीचेकी स्थितियोंके परिणाम विशेष अधिक पाये जाते हैं । इस प्रकार श्रेणिप्ररूपणा समाप्त हुई। वहारकी प्ररूपणा करते हैं। यथा-समस्त संक्लेशस्थानोंको जघन्य स्थितिके संक्लेशस्थानोंके प्रमाणसे अपहृत करनेपर वे कितने कालके द्वारा अपहृत होते हैं ? उक्त प्रमाणसे वे असंख्यात कालके द्वारा अपहृत होते हैं । इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके संक्लेशस्थानोंतक ले जाना चाहिये। इसी प्रकार विशुद्धिस्थानोंके भी अवहारका कथन करना चाहिये । अवहारका कथन समाप्त हुआ। जघन्य स्थितिके संक्लेशस्थान सब संक्लेशस्थानोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? वे सब संक्लेशस्थानोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके स्थानों तक ले जाना चाहिये । इसी प्रकार विशुद्धस्थानोंके भागाभागकी प्ररूपणा करना चाहिये। इस प्रकार भागाभागप्ररूपणा समाप्त हुई। १ अ-आ-काप्रतिषु 'विसोहिट्ठाणाणि ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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