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________________ ४, २, ६, ५०.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा [२०३ सण्णिपंचिंदियपज्जत्ताणमाउअस्स हिदिबंधट्टाणविसेसो विसेसाहिओ । ठिदिबंधट्टाणाणि एगरूवाहियाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। चउरिंदियपजत्ताणं चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपजत्ताणं चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्ताणं चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पजत्ताणं चउण्णं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तेइंदियपजत्ताणं मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्ताणं मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपज्जत्ताणं मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पजत्ताणं मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। चउरिदियपज्जत्ताणं मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्ताणं मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपजत्ताणं मोहणीयस्स उक्कस्सओ टिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्ताणं मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। असण्णिपंचिंदियपजत्ताणं णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो । तस्सेव अपजत्ताणं णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्ताणं णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्ताणं णामा-गोदाणमुक्कस्सओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । असण्णिपंचिंदियपज्जत्ताणं चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्ताणं चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ टिदिबंधो स्थानविशेष विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकके चार कर्मोका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके चार काँका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके चार काँका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। त्रीन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । असंही पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके चार कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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