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________________ २०४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ६, ५०. विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्ताणं चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ | तस्सेव पज्जत्ताणं चदुष्णं कम्माणमुक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । असणिपंचिंदियपज्जत्ताणं मोहणीयस्स जहण्णओ द्विदिबंधो संखेज्जगुणो । तस्सेव अपज्जत्ताणं मोहणीयस्स जणओ ट्ठदिबंध विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्ताणं मोहणीयस्स उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्ताणं मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । सण्णिपंचिंदियपज्जत्ताणं णामा-गोदाणं जहण्णओ द्विदिबंधो संखेज्जगुणो । तस्सेव पज्जत्ताणं चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्ताणं मोहणीयस्स जहण्णओ बंध संखेज्जगुणो । तस्सेव अपज्जत्ताणं णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । तस्सेव अपज्जत्ताणं चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्ताणं मोहणीयस्स जहण्णओ ट्ठिदिबंधो संखेज्जगुणो । तस्सेव अपज्जत्ताणं णामा-गोदाणं बंधाविसेसो संखेज्जगुणो । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवाहियाणि । उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्ताणं चदुण्णं कम्माणं द्विदिबंधट्टाणविसेसो विसेसाहिओ । बिंधाणाणि गवाहियाणि । उक्कस्सओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्ताणं मोहणीयस्स द्विदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । द्विदिबंधट्टाणाणि एगरूवाहियाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्ताणं णामा-गोदाणं द्विदिबंधद्वाणविसेसो विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके चार कमका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके चार कमका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तक के मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तक के मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके पर्याप्तक के चार कमका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक । उसीके पर्याप्तक के मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तक के नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तकके चार कमका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोंका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तक के मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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