SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२ ] . छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, ५०. संखेजगुणो । तस्सेव अपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ टिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पज्जत्तयस्स णामा-गोदाणमुक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पजत्तयरस चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । एवं सेसाणि तिण्णि पदाणि णेदव्वाणि । तेइंदियपजंत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । एवं सेसदोपदाणि विसेसाहियकमेण णेदव्वाणि । तस्सेव पज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सओ टिदिबंधो विसेसाहिओ । बेइंदियपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स उक्करसओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पज्जत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। चउरिंदियपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके चार कर्मोका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार शेष तीन पदोंको ले जाना चाहिये। __ आगे श्रीन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार शेष दो पदोंको भी विशेषाधिकके क्रमसे ले जाना चाहिये। उसीके पर्याप्तकके चार कर्मों का जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंके आयुका स्थितिबन्ध १ वाक्यमिदं नोपलभ्यत अ-आ-काप्रतिषु । २ ताप्रती ' चदुण्णं क० उक्क० (जह०)' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy