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________________ १९४) छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, ५०. बादरेइंदियपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहणिया आबाहा संखेज्जगुणा । सुहुमेइंदियपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहणिया आबाहा विसेसाहिया । एवं सेसाणं छप्पदाणं पिणेदव्वं । बेइंदियपजत्तयस्स गामा-गोदाणं जहणिया आवाहा संखेजगुणा । तस्सेव अपजत्तयस्स णामा-गोदाणं जहणिया आबाहा विसेसाहिया । तस्सेव अपजत्तयस्स णामा-गोदाणमुक्कसिया आबाहा विसेसाहिया । तस्सेव पजत्तयस्स णामा-गोदाणमुक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । बेइंदियपजत्तयस्य चदुण्णं कम्माणं जहणिया आबाहा विसेसाहिया । तस्सेव अपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहणिया आबाहा विसेसाहिया । तस्सेव अपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । तस्सेव पजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । तेइंदियपजत्तयस्स णामा-गोदाणं जहणिया आबाहा विसेसाहिया। तस्सेव अपजत्तयस्स णामा-गोदाणं जहणिया आवाहा विसेसाहिया । तस्सेव अपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणमुक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया। तस्सेव पज्जत्तयस्स णामा-गोदाणमुक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । तेइंदियपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहणिया आबाहा विसेसाहिया । तस्सेव अपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णिया आबाहा विसेसाहिया । तस्सेव अपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सिया आवाहा विसेसाहिया । तस्सेव पजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया। बेइंदियपजत्तयस्स मोहणीयस्स जहणिया आबाहा विसेसाहिया । तस्सेव अपजत्तयस्स मोहणीयस्स जहणिया आबाहा विसेसाहिया । विशेष अधिक है । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयकी जघन्य आवाधा संख्यातगुणी है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयकी जघन्य आबाधा विशेष अधिक है। इसी प्रकार शेष छह पदोंका भी अल्पवहुत्व जानना चाहिये। आगे द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है। उसीके अपर्याप्तकके नाम गोत्रकी जघन्य आबाधा विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रकी उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके नाम व गोत्रकी उस्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके चार कमौकी जघन्य आबाधा विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोंकी जघन्य आबाधा विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोंकी उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके चार कौकी उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। त्रीन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रकी जघन्य आधा विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रकी जघन्य आवाधा विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रकी उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके नाम व गोत्रकी उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। त्रीन्द्रिय पर्याप्तकके चार कर्मों की जघन्य आबाधा विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके चार कोकी जघन्य आबाधा विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोकी उत्कृष्ट भाबाधा विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके चार कर्मोकी उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयकी जघन्य आबाधा विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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