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________________ १८६] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, ५०. संखेजगुगो । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । चदुग्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । एवं तेइंदिय-चउरिंदिय-असणिपंचिंदियअपजत्ताणं पिणेयव्वं । सवयोवो बेइंदियपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणमाबाहाहाणविसेसो । आबाहाहाणाणि एगरूवाहियाणि । चदुण्णं कम्माणमाबाहट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ । आबाहाहाणाणि एगवाहियाणि । मोहणीयस्स आबाहाहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाहाहाणाणि एगरूवाहियाणि । आउस्स जहणिया आबाहा संखेजगुणा। जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । णामा-गोदाणं जहग्गिया आबाहा संखेजगुणा । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया। चदुण्णं कम्माणं जहग्णिया आबाहा विसेसाहिया । उक्कस्सिया आवाहा विसेसाहिया । मोहणीयस्स जहणिया आबाहा संखेजगुणा । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । आउअस्स आबाहाहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाहाहाणाणि एगरूवाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया। हिदिबंधहाणविसेसो संखेजगुणो। हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवाहियाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । णामा-गोदाणं ट्ठिदिबंधट्ठाणविसेसो असंखेजगुणो । हिदिबंधहाणाणि एगरूवाहियाणि । चदुण्णं कम्माणं हिदिबंधहाणविसेसो विससाहिओ । हिदिबंधट्ठाणा णि एगरूवाहियाणि । मोहणीयस्स हिदिबंधहाणविसेसो चार कमौका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार श्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय और असंशी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके भी जानना चाहिये। द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका आबाधास्थानविशेष सबसे स्तोक है । आवाधास्थान एक रूपसे अधिक हैं । चार कौंका आबाधास्थानविशेष विशेष अधिक है। आवाधास्थान एक रूपसे अधिक हैं । मोहनीयका आवाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आबाधास्थान एक रूपसे अधिक हैं। आयुकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है। जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । नाम व गोत्रकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। चार कर्माकी जघन्य आबाधा विशेष अधिक है। उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। मोहनीय की जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है। उत्कृष्ट आषाधा विशेष अधिक है। आयुका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आबाधास्थान एक रूपसे अधिक हैं । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध धक हैं। नाम व गोत्रको स्थितिबन्धस्थानविशेष असंख्यातगणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे अधिक है । चार काँका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष १ अ-आ-लाप्रतिषु तेइंदिय-असण्णि', ताप्रतौ तेइंदिय [चउरिदिय ] असण्णि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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