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________________ १६४] छक्वंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, ५०. [ एवं सण्णिपंचिंदिय-] पजत्तस्स वि वत्तव्वं । सत्थाणं गदं । परत्याणे सन्वत्थोवो सुहमेइंदियअपजत्तयस्स आबाधाहाणविसेसो। आबाधाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । बादरेइंदियअपजत्तयस्स आबाधाहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाधाहाणाणि एगवेण विसेसाहियाणि । सुहुमेइंदियपजत्तस्स आबाधाहाणविसेसो संखेनगुणो । आबाधाहाणाणि एगस्वेण विसेसाहियाणि । बादरेइंदियपजत्तयस्स आबाधाद्वाणविसेसो संखेजगुणो । आबाधाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । बेइंदियअपजत्तयस्स आबाधाहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाधाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव पबत्तयस्स आबाधाहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाधाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तेइंदियअपजत्तयस्स आबाधाहाणविसेसो संखेजगुणो । आषाधाहाणाणि एगस्वेण विसेसाहियाणि । तस्सेव पजत्तयस्स आबाहाहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाहाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । एवं चउरिदिय-असण्णिपंचिंदियपजत्तापजत्ताणं च णेदव्वं । तदो बादरएइंदियपजत्तयस्स जहणिया आबाधा संखेजगुणा । सुहुमेइंदियपजत्तयस्स जहणिया आबाहा विसेसाहिआ। बादरेइंदियअपजत्तयस्स जहणिया आबाहा विसेसाहिआ। सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स जहणिया आबाधा विसेसाहिआ। तस्सेव अपजत्तयस्स उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिआ । बादरेइंदियअपजत्तयस्स उक्कस्सिया आबाधा विसेसाहिआ। प्रकार संक्षी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके भी कहना चाहिये । स्वस्थान अल्पबद्भुत्व समाप्त हुआ। परस्थानकी अपेक्षा सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकका आबाधास्थानविशेष सबसे स्तोक है। आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है । आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकका आषाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है । आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है । आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उसीके पर्याप्तकका आवाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है । आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। त्रीन्द्रिय अपर्याप्तकका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसीके पर्याप्तकका आवाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय और असंही पंचेन्द्रिय पर्याप्तक तथा अपर्याप्तकके भी ले जाना चाहिये। उससे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तककी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तककी जघन्य आवाधा विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तककी जघन्य आवाधा विशेष अधिक है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तककी जघन्य आबाधा विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तककी उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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