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________________ ४, २, ६, ५०.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा [१६३ विगलिंदियाणमाबाधाहाणपमाणमावलियाए संखेज्जदिभागो। सण्णिपंचिंदियअपज्जत्तयस्स आबाधाहाणपमाणं संखेजावलियाओ । तं च अंतोमुहुत्तं । तस्सेव पजत्तयस्स आबाधाहाणं संखेजाणि वाससहस्साणि । एवं पमाणं गदं । __ अप्पाबहुगं दुविहं अव्वोगाढप्पाबहुगं मूलपयडिअप्पाबहुगं चेदि । तत्थ अव्वोगाढअप्पाबहुअं पि दुविहं सत्थाणप्पाबहुअं परत्याणप्पाबहुअं चेदि । तत्थ सत्थाणप्पाबहुअं वत्तइस्सामो- सव्वत्योवो सुहुमेइंदियअपजत्तयस्स आबाधाहाणविसेसो । आबाधाहाणाणि एगस्वेण विसेसाहियाणि । जहणिया आबाधा असंखेजगुणा । उक्कस्सिया आबाधा विसेसाहिया । एवं सुहुमेइंदियपजत्त-बादरेइंदियपज्जत्तापज्जत्ताणं च वत्तव्वं । सवयोवो बेइंदियअपजत्तयस्स आबाधाहाणविसेसो । आबाधाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । जहणिया आबाधा संखेजगुणा । उक्कस्सिया आबाधा विसेसाहिया । एवं बेइंदियपजत्ततेइंदिय-चउरिंदिय-असण्णिपंचिंदियपज्जत्तापजत्ताणे च सत्थाणप्पाबहुगं वत्तव्वं । सण्णिपंचिंदियअपजत्तयस्स सव्वत्थोवा जहणिया आबाहा । आबाहाट्ठाणविसेसो संखेजगुणो। आबाहाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । एवं भाग मात्र है। आठ विकलेन्द्रियोंके आवाधास्थानोंका प्रमाण वलीके संख्यातवें भाग है। संशी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकके आवाधास्थानोंका प्रमाण संख्यात आवलियां है। वह अन्तर्मुहूर्तके बराबर है। उसीके पर्याप्तकके आवाधास्थान संख्यात हजार वर्ष प्रमाण हैं। इस प्रकार प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई। ___अल्पबहुत्व दो प्रकार है-अव्वोगाढ़अल्पबहुत्व और मूलप्रकृतिअल्पबहुत्व । इनमें अव्वोगाढअल्पबहुत्व भी दो प्रकार है-स्वस्थान अल्पबहुत्व और परस्थान अल्पबहुत्व । इनमें स्वस्थान अल्पबहुत्वको कहते हैं-सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकका आषाधास्थानविशेष सबसे स्तोक हैं। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। जघन्य आबाधा असंख्यातगुणी है । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। इसी प्रकार सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक तथा बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक जीवोंके भी कहना चाहिये । द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकका आवाधास्थानविशेष सबसे स्तोक है। . आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। जघन्य आवाधा संख्यातगुणी है। उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय पर्याप्त तथा त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, एवं असंही पंचेन्द्रिय पर्याप्तक व अपर्याप्तकके भी स्वस्थान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये। संशी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तककी जघन्य आबाधा सबसे स्तोक है। आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है । आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। इसी १ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-प्रतिषु पंचिंदियअपज्जत्ताप्रज्जत्ताण', ताप्रती 'पंचिंदियअपज्जत्त.. पज्जत्ताण' इति पाठः। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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