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________________ १५६ छक्खंडागमे वेयणाखंड [५, २, ३, ४४. हितो सुहुमेइंदियपज्जत्ताणं डिदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि, तधा सव्वविगलिंदियअपज्जत्तद्विदिबंधट्ठाणेहितो बाइंदियपज्जत्तद्विदिबंधट्टाणाणि किण्ण संखेज्जगुणाणि ? ण, भिण्णजादित्ताद। भिण्णहिदित्तादो च । तस्सेव पज्जत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥४४॥ । सुगममेदं । चरिंदियअपज्जत्तयस्स द्विदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि॥४५ मज्झिमद्विदिविसेसेहितो हेट्ठा उवरि च संखेज्जगुणाणं वीचारट्ठाणाणमत्थुवलंभादो । तस्सेव पज्जत्तयस्स द्विदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥४६॥ एत्थ कारणं पुव्वं व वत्तव्यं । असण्णिपंचिंदियअपज्जत्तयस्स विदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥४७॥ को गुणगा। ? संखेज्जा समया । तस्सेव पज्जत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥४८॥ कारणं सुगमं । शंका-जैसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकों तथा बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके स्थितिबन्धस्थानोंसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकों के स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं, वैसे ही सब विकलेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके स्थितिबन्धस्थानोंसे द्वीन्द्रिय पर्याप्तकोंके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे क्यों नहीं हैं ? समाधान नहीं, क्योंकि, उनकी जाति व स्थिति उनसे भिन्न है। उनसे उसके ही पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ४२ ॥ यह सूत्र सुगम है। उनसे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ४५ ॥ क्योंकि, यहां मध्यम स्थितिविशेषोंसे नीचे व ऊपर संख्यातगुणे वीवारस्थान पाये जाते हैं। उनसे उसीके पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥४६॥ यहां कारण पहिलेके ही समान बतलाना चाहिये । उनसे असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥४७॥ गुणकार क्या है ? गुणकार यहां संख्यात समय है। उनसे उसीके पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ४८॥ इसका कारण सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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