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________________ ., , ६, ११.] वैयणमहाहियारे बैयणकालविहाणे सामित्त बादरेइंदियपज्जत्तयस्स हिदिबंधट्टाणाणि संखेज्जगुणाणि॥४०॥ कारणं पुष्वं व वत्तव्वं । बाइंदियअपज्जत्तयटिदिबंधट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥४१॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागस्स संखेज्जदिभागो। कुदो १ बीइंदिया अपज्जत्तयस्स वीचारहाणाणि पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागमेत्ताणि । एइंदियाणं पुण आवलियाए असंखेज्जदिभागेण पलिदोवमे खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्ताणि । जेण एत्थ हेहिमरासिणा उवरिमरासीए ओवहिदाए आवलियाए असंखेज्जदिभागस्स संखेज्जदिभागो आगच्छदि तेण सो गुणगारो होदि त्ति अवगम्मदे ।। __ तस्सेव पज्जत्तयस्स द्विदिवंधट्टाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥४२॥ कुदो १ विसोहीए संकिलेसेण च हेट्ठोवरि-मज्झिमडिदिबंधट्ठाणेहितो संखेज्जगुणहिदिविसेसेसु वीचारदसणादो। तीइंदियअपज्जत्तयस्स ट्ठिदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि॥४३॥ कारणं सुगमं । जहा सुहुमेइंदियअपज्जत्त-बादरेइंदियअपज्जत्ताणं' ट्ठिदिबंधट्ठाणे उनसे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥४०॥ इसका कारण पहिलेके ही समान कहना चाहिये। उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ४१ ॥ गुणकार क्या है ? वह आवलीके असंख्यातवें भागका संख्यातवां भाग है, क्योंकि, द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके वीचारस्थान पल्योपमके संख्यातवें भाग प्रमाण हैं। परन्तु एकेन्द्रियके वीचारस्थान पल्योपममें आवलीके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो लब्ध हो उतने मात्र हैं। चूंकि यहां नीचेकी राशिका ऊपरकी राशिमें भाग देने पर भावलीके असंख्यातवें भागका संख्यातवां भाग आता है, अतः वह गुणकार होता है, ऐसा प्रतीत होता है। उनसे उसीके पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ४२ ॥ इसका कारण यह है कि विशुद्धि और संक्लेशसे नीचे, ऊपर और मध्यके स्थितिस्थानोंसे संख्यातगुणे स्थितिविशेषों में वीचार देखा जाता है। उनसे त्रीन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुण हैं ॥४३॥ इसका कारण सुगम है। , अप्रतो महमेइंदियअपज्जत्ताणं' इति पाठः। छ..१-१९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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