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१, २, ६, १६.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्त पुविल्लरूवेसु पक्खित्तेसु गुणगारो होदि त्ति || पुणो एदेण बादरधुवद्विदीए गुणिदाए संपहियट्ठाणं होदि [२२९ । दुसमउत्तरं वडिदूण बद्धे अण्णमपुणरुत्तहाणं होदि । एत्थ पुव्वुत्तंसं दुगुणिय सगलरूवेसु पक्खेवो कायव्वो।१।२। एदम्मि पुन्विल्लरूवेसु पक्खित्ते एत्तियं होदि ५७।। एदेण बादरधुवहिदीए गुणिदाए दुसमउत्तरहाणं होदि
|२३० । तिसमउत्तरं पंधिदूणागदस्स अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं हीदि । पुव्वत्तसं तिगुणिय | १३|| पुव्वुत्तगुणगाररूवेहि सह मेलाविदे एत्तियं होदि १७ । पुणो एदेण बादरधुवहिदीए
गुणिदाए इच्छिदवड्डिहाणं होदि २३१)। एवं छेदगुणगारो होदूण ताव गच्छदि जाव पुव्वुत्तंसस्स रूवूणबादरधुवट्टिदी गुणगारो जादो त्ति । पुणो समउत्तरं वड्डिदूण पबद्ध समगुणगारो होदि । तस्स पमाणमट्ठवंचास [५८|| पुणो एदेण बादरधुवहिदीए गुणिदाए चरिमसंखेज्जगुणवड्विट्ठाणं होदि । तं च एदं |२३२ [ । एवं णाणावरणीयस्स तीहि वडीहि अजहण्णपरूपणा बादरधुवट्ठिदिमस्सिदूण कदा । जहण्णढिदिमस्सिदूण पुण देनेपर जो लब्ध हो उसे पूर्व रूपोंमें मिलानेपर गुणकार होता है-५७१ । इससे बादर ध्रुवस्थितिको गुणित करने पर साम्प्रतिक स्थान होता है-२१.x} = २२९ । पश्चात् दो समय अधिक बढ़कर बन्ध होने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। यहां पूर्वोक्त अंशको दुगुणित करके समस्त रूपों में मिलाना चाहिये--२ = । इसको पूर्व रूपोंमें मिलानेपर इतना होता है- ५७ + 1 = ५७३ । इससे बादर ध्रुवस्थितिको गुणित करनेपर दो समय अधिक वृद्धिका स्थान होता है३५ x = २३० । तीन समय अधिक बढ़कर आये हुए जीवके अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। पूर्वोक्त अंशको तिगुणा करके (४३) पूर्वोक्त गुणकार रूपोंके साथ मिलानेपर इतना होता है-५७ है। इससे बादर ध्रुवस्थितिको गुणित करने पर इच्छित वृद्धिस्थान होता है-२३' x = २३१ । इस प्रकार पूर्वोक्त अंशका गुणकार एक कम ध्रुवस्थितिके होने तक छेदगुणकार होकर जाता है। पश्चात् एक समय भधिक बढ़कर बन्ध होने पर समगुणकार होता है। उसका प्रमाण अट्ठावन ५८ है। इससे बादर धुवस्थितिको गुणित करनेपर संख्यात गुणवृद्धिका अन्तिम स्थान होता है। वह यह है- ५८४४ - २३२ । इस प्रकार बादर एकेन्द्रिय जीवकी ध्रुधस्थितिका माधय करके तीन वृद्धियोंके द्वारा मानापरणीयकी अजघन्य स्थितिके स्वामित्वकी प्ररूपणा की है।
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