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________________ ४, २, ६, १६.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्त [ १२९ होदि । १० । एदेण कमेण छेदगुणगारो होदूण ताव गच्छदि जाव अण्णगरूवूणधुवट्ठिदिमेतं वड्डिदे त्ति । पुणो संपुण्णधुवहिदीए वड्डिदाए तिगुणवड्डी होदि, बादरधुवहिदिमेत्तसमयाणं जदि एगा गुणगारसलागा लब्भदि तो बादरधुवहिदीए किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवहिदाए एगगुणगारसलागुवलंभादो । पुणो एवं सलागं दोसु रुवेसु पक्खिविय बादरधुट्टिदीए गुणिदाए तिगुणवड्डिहाणं होदि । तस्स पमाणमेदं । १२ । पुणो एदस्सुवरि समउत्तर वड्डिदे छेदगुणगारो होदि । तं जहा-धुवहिदिमेत्तसमयाणं जदि एगरूवं गुणगारो लन्भदि तो एगसमयस्स किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए एगरूवस्स असंखेज्जदिभागो आगच्छदि । एदम्मि तिसु रूवेसु पक्खित्ते एत्तियं होदि |१३|| एदेण बादरधुवद्विदीए गुणिदाए समयाहियतिगुणवड्डिट्ठाणं होदि | १३| | पुणो दुसमउत्तरं वड्डिदे छेदगुणगारो होदि । एत्थ गुणगोर उप्पाइज्जमाणे पुविल्लमंसं दुगुणिय तिसु रूवेसु पक्खवो कायव्वो । १।२। तिसमयउत्तरं वड्डिदे छेदगुणगारो होदि । एत्थ पुव्वु दुगुणी वृद्धि होती है.-४४५ = १० = ४४२+२। इस क्रमले छेदगुणकार होकर तब तक जाता है जब तक कि अन्य एक अंकसे कम ध्रुवस्थिति प्रमाण वृद्धि नहीं हो जाती। पश्चात् सम्पूर्ण ध्रुवस्थिति प्रमाण वृद्धिके हो जानेपर तिगुणी वृद्धि होती है। कारण यह है कि बादर एकेन्द्रियकी ध्रुवस्थिति प्रमाण समयोंके यदि एक गुणकारशलाका पायी जाती है तो बादर ध्रुवस्थिति में कितनी गुणकारशलाकायें प्राप्त होगी, इस प्रकार फलगुणित इच्छामें प्रमाण राशिका भागं देनेपर एक गुणकारशलाका पायी जाती है। इस शलाकाको दो रूपोंमें मिलाकर उससे बादर ध्रुवस्थितिको गुणित करनेपर तिगुनी वृद्धि होती है। उसका प्रमाण यह है- (२+१)४४ = १२ । इसके ऊपर एक समय अधिक बढ़नेपर छेदगुणकार होता है । यथा-ध्रुवस्थिति प्रमाण समयोंका यदि एक अंक गुणकार प्राप्त होता है तो एक समयका कितना गुणकार प्राप्त होगा, इस प्रकार फलगुणित इच्छामें प्रमाण राशिका भाग देनेपर एक रूपका असंख्यातवां भाग आता है- है। इसको तीन रूपोंमें मिलानेपर इतना होता है- ३ + । इसके द्वारा बादर ध्रुवस्थितिको गुणित करनेपर एक समय अधिक तिगुणी वृद्धिका स्थान होता है-४x७ १३ -४४३ + १ पश्चात् दो समय अधिक वृद्धिके होनेपर छेदगुणकार होता है। यहां गुणकारको उत्पन्न कराते समय पूर्वके अंशको दुगुणित कर उसे तीन रूपोंमें मिलाना चाहिये। x २। तीन समय अधिक बढ़नेपर छेदगुणकार होता है। यहां पूर्वके अंशको तीनसे गुणित १ प्रतिषू 'अण्णेगं' इति पाठः । छ. ११-१७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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