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________________ १२८ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ६, १६. लद्धरूवूणमेत्तं वडिदं त्ति । संपुण्णे वडिदे समभागहारो होदि । तं जहा - एगरूवं विरलेदूण उवरिमेरूवधरिदं दादूण समकरणं करिय रूवाहियहेडिमविरलणाए उवरिमविरलणाए ओवट्टिदाए एगरूवमागच्छदि । तम्मि दोसु रूवेसु सोहिदे एगरूवं भागहारो होदि । एदेणोवट्टिदबादरधुवट्ठिदीए बादरधुवट्ठिदीऐ उवरि' पक्खित्ताए संखेज्जगुणवड्डीए आदी होदि, दोंरूवेहि बादरघुवट्ठिदीए गुणिदाए उप्पण्णत्तादो । एदस्सुवरि समउत्तरं वडिदे छेदगुणगारो होदि । दोष्णं रूवाणं उवरि एगरूववड्डिनिमित्तपक्खेवो उच्चदे । तं जहा - धुवट्ठिदी वढमाणाए जदि एगरूवगुणगारो लब्भदि तो एगसमयस्स किं लभाभो ति वी गरु वट्टिदे पक्खेवपमाणं होदि । एत्थ धुवट्ठिदित्ति संदिट्ठीए चत्तारि | ४ | रुवाणि । एदस्स गुणगारो एत्तिओ होदि | | | पुणो एदेण चादरधुवट्ठिदीए गुणिदाए रूवाहियदु गुणवड्ढिड्डाणं होदि |९|| पुणो दुसमउत्तर वडिदे वि छेदगुणगारो होदि । एत्थ पुत्रं व तेरासियकमेण च्छेदगुणगारो साइयव्वो । तस्स पमाणमेदं |२|| एदेण बादरधुवट्ठिदीए गुणिदाए दुसमउत्तरदुद्गुणवडी जो प्राप्त हो उसमें से एक कम करनेपर प्राप्त राशि प्रमाण वृद्धि नहीं हो जाती । पूर्ण लब्ध प्रमाण वृद्धि के होनेपर समभागहार होता है । यथा— एक रूपका विरलन करके ऊपर उपरिम एक अंकके प्रति प्राप्त राशिको देकर समकरण करके एक अधिक अधस्तन विरलनका उपरिम विरलन में भाग देनेपर एक रूप प्राप्त होता है । उसको दो रूपोंमेंसे कम कर देनेपर एक रूप भागद्दार होता है। इससे अपवर्तित बादर एकेन्द्रियकी ध्रुवस्थितिको उसकी ध्रुवस्थितिके ऊपर प्रक्षिप्त करनेपर संख्यातगुणवृद्धिका प्रारम्भ होता है, क्योंकि, वह बादर एकेन्द्रियकी ध्रुवस्थितिको दो अंकोंसे गुणित करनेपर उत्पन्न हुई है । इसके ऊपर उत्तरोत्तर एक एक समयकी वृद्धि होनेपर छेदगुणकार होता है । अब दो रूपों के ऊपर वृद्धिके निमित्तभूत प्रक्षेपको कहते हैं । यथा- ध्रुवस्थिति प्रमाण वृद्धिके होनेपर यदि एक रूप गुणकार प्राप्त हे ता है तो एक समयकी वृद्धिमें क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार ध्रुवस्थितिसे एक रूपको अपवर्तित करनेपर प्रक्षेपका प्रमाण होता है । यहां संदृष्टिमें ध्रुवस्थितिके लिये ४ अंक है । इसका गुणकार इतना ( 3 ) है | इससे बादर ध्रुवस्थितिको गुणित करनेपर एक अधिक दूनी वृद्धिका स्थान होता है8×3 = ९ =४ x २ + १ । दो समय अधिक वृद्धिके होनेपर भी छेदगुणकार होता है। यहां पहिलेके समान ही त्रैराशिक क्रमसे छेदगुणकारको सिद्ध करना चाहिये । उसका प्रमाण यह है- ई। इससे बादर ध्रुवस्थितिको गुणित करनेपर दो समय अधिक १ अप्रतौ ' बादर अद्ध्रुवट्ठिदीए ' इति पाठः । २ प्रतिषु ' उवरिम ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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