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१०.] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ६, ९. विंद, अद्धेण पुण| | सागरे।वमस्स तिणि सत्तभागा । पुणो एदम्हादो द्विदिसंतादो एइंदिय- | २०. \ बंधमस्सिदूण अणुक्कस्सट्ठिदिवियप्पा उप्पादेदव्वा । तं जहा- पादरे- ०००० । इंदियपज्जत्तरण समऊणुक्कस्सहिदीए पबद्धाए अण्णमपुणरुतहाणं होदि ।' ०००० । दुसमऊणाए पबद्धाए अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । तिसमऊणाए पबद्धाए अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । एवं चदु-पंचसमऊणादिकमेण ओदारेदव्वं जाव पादेइंदियपज्जत्तएण सव्वविसुद्धण बद्धजहण्णसंतसमाणहिदि त्ति ।
संपहि एइदिएसु लद्धसव्वट्ठाणाणि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि चेव । कुदो ? तत्थ वीचारहाणाणि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि चव होते त्ति गुरूव. देसादो । पुणो एदिस्से हिदीए हेट्ठा खवगसेढिमस्सिदण अण्णाणि अंतोमुहुत्तट्ठाणाणि लभंति । तं जहा- एगो जीवो खवगसेडिं चडिय अणियट्टिखवगो जादो । तदो अणियट्टिअद्धाए संखेज्जेसु भागेसु गदेसु असष्णिट्ठिदिबंधेण सरिसं संतकम्म कुणदि । पुणो अंतोमुहुत्तं गंतूण चदुरिंदियविदिबंधेण सरिसं संतकम्मं कुणदि । पुणो अंतोमुहुत्तं गंतूण तेइंदियहिदिबंधेण सरिसं संतकम्मं कुणदि । तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण बेइंदियट्ठिदिबंधेण सरिसं द्विदिसंतकम्मं कुणदि। तदो अंतोमुहुत्तं गतूण एइंदियट्ठिदि
बिन्दु हैं, जो कालकी अपेक्षा सागरोपमके तीन बटे सात भाग (8) के सूचक हैं। इस स्थितिसत्त्वसे एकेन्द्रियके स्थितिबंधका आश्रय करके अनुत्कृष्ट स्थिति- , विकल्पोंको उत्पन्न कराना चाहिये । यथा- बादर एकेन्द्रिय जीवके द्वारा एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिके बांधनेपर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है । दो समय कम उत्कृष्ट स्थितिके बांधनेपर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है।
तीन समय कम उत्कृष्ट स्थितिके बांधनेपर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है । ... इस प्रकार चार-पांच आदि समयोंकी हीनताके क्रमसे सर्वविशुद्ध बादर एकेन्द्रिय ..... पर्याप्तक जीवके द्वारा बांधी गई जघन्य स्थितिके सत्व समान स्थितिके होने तक उतारना चाहिये।
- अब एकेन्द्रियों में प्राप्त सब स्थान पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र ही हैं, क्योकि " उनमें वीचारस्थान पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र ही होते हैं" ऐसा गुरुका उपदेश है। इस स्थितिके नीचे क्षपकश्रेणिका आश्रय करके अन्य अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थान प्राप्त होते हैं । यथा - एक जय सपकश्रेणिपर आरूढ़ होकर अनिवृत्तिकरण क्षपक हुमा । पश्चात् अनिवृत्तिकरणकाल के संख्यात बहुभ गोंके वीतनेपर वह अंसशी जीवके स्थितिबन्धके समान स्थितिसत्त्वको करता है । तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त काल विताकर पतरिन्द्रयके स्थितिबन्धके समान स्थितिसत्त्वको करता है। पश्चात अन्तर्महुर्त काल विताकर वह त्रीन्द्रिय जीवके स्थितिबन्धके समान स्थितिसत्त्वको करता है । पश्चात् अन्तर्मुहुर्त काल जाकर वह द्वीन्द्रिय जीवके स्थितिबन्धके समान स्थितिसत्त्वको करता है। तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्तके वीतनेपर एकेन्द्रिय जीवके स्थितिबन्धके समान स्थिति
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