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________________ १, २, ६, ९.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्तं [१०३ पि' पुणरुत्तट्ठाणं होदि । एवं ताव पुणरुत्तट्ठाणाणि उप्पज्जंति जाव समऊणुक्कीरणद्धामेत्तफालीओ पदिदाओ त्ति । पुणो चरिमफालीए [अवणिदाए] उक्कीरणद्धाए चरिमसमओ गलदि । एदमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । कारणं सुगम । एवं जाणिदूण रूवूणुक्कीरणद्धाए अहियहिदिखंडमेत्तट्ठाणाणि [णेदव्वाणि] । पुणो अंतिमजीवेण पुवं ठविणागदचरिमफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए चरिमसमओ गलदि । एदमपुणत्तट्ठाणं होदि । एवं तदियपरिवाडी पलविदा । एवं धुवट्ठिदीदो समुप्पज्जमाणपलिदोवमस्स असंखेज्जादभागमेत्तद्विदिखंडयाणि अस्सिदूण पिरंतरहाणपरूवणा कादव्वा । संपहि संपुण्णुक्कीरणद्धाए एगठिदिखंडएण च अहियएइंदियट्ठिदिबंधमेत्तहिदिसंतकम्मिएण पढमफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए एगो समओ गलदि । एदमपुणरुत्त. ट्ठाणं होदि । विदियफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए बिदियसमओ गलदि । एदं पि अपुणरुत्तट्ठाणं होदि । तदियफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए तदियसमओ गलदि । एदं पि अपुणरुत्तट्ठाणं होदि । एवं रूवणुक्कीरणद्धामेत्तेसु अपुणरुत्तट्ठाणेसु समुप्पण्णेसु । एदमेवं चेव दृषिय पुणो एदेसु णिरुद्धजीवेसु सव्वुक्कस्सट्ठिदिसंतकम्मिएण अप्पिदविदिखंडयस्स पढमफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए पढमसमओ गलदि । एदं पुणरुत्तविघटित होनेपर उत्कीरणकालका तृतीय समय गलता है । यह भी पुनरुक्त स्थान है। इस प्रकार तब तक पुनरुक्त स्थान उत्पन्न होते हैं जब तक एक समयः कम उत्कीरणकाल प्रमाण फालियां विघटित नहीं हो जाती। पश्चात् अन्तिम फालिके [विघटित होनेपर ] उत्कीरणकालका अन्तिम समय गलता है । यह अपुनरुक्त स्थान है। इसका कारण सुगम है। इस प्रकार जानकर एक कम उत्कीरणकालसे अधिक स्थितिकाण्डक प्रमाण स्थानों [ले जाना चाहिये। तत्पश्चात अन्तिम जीवके द्वारा पूर्वमें स्थापित करके आयी हुई अन्तिम फालिके विघटित किये जानेपर उत्कीरणकालका अन्तिम समय गलता है । यह अपुनरुक्त स्थान है। इस प्रकार तृतीय परिपाटीकी प्ररूपणा की है। इस प्रकार ध्रुवस्थितिसे उत्पन्न होनेवाले पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र स्थितिकाण्डकोंका आश्रय करके निरन्तर स्थानोंकी प्ररूपणा करना चाहिये। __अब सम्पूर्ण उत्कीरणकालसे और एक स्थितिकाण्डकसे अधिक एकेन्द्रिय स्थितिबन्धके बराबर स्थितिसत्कर्म युक्त जीवके द्वारा प्रथम फालिके विघटित किये जानेपर उत्कीरणकालका एक समय गलता है। यह अपुनरुक्त स्थान है। द्वितीय फालिके विघटित किये जाने पर उत्कीरणकालका द्वितीय समय गलता है। यह भी अपुनरुक्त स्थान है। तृतीय फालिके विघटित होनेपर उत्कीरणकालंका तुतीय समय गलता है । यह भी अपुनरुक्त स्थान है। यही क्रम एक समय कम उत्कीरणकाल प्रमाण अपुनरुक्त स्थानोंके उत्पन्न होने तक चालू रहता है। अब इसे यों ही स्थापित करके पश्चात् इन विवक्षित जीवोंमसे सर्वोत्कृष्टस्थितिसत्कर्मिक जीवके द्वारा विवक्षित स्थितिकाण्डककी प्रथम फालिके विघटित किये जानेपर उत्कीरणकालका प्रथम समय १ प्रतिषु 'हि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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