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________________ ४, २, ६, ९. ] वेण महाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्तं [ ९७ उप्पण्णे पुणो पढमट्ठिदिकंदयरस चरिमफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए चरिमसमओ गलदि । ताचे अपुणरुत्तट्ठाणमुप्पज्जदि । कुदो ? घादिदसेसट्ठिदिसंतकम्मस्स चदुरूवूणधुव ट्ठिदिपमाणत्तुवलंभादो । एवमेदेण कमेण ट्ठिदिखंडयमेत्त अपुर्णरुत्तट्ठाणाणि उप्पादिय पुणो उक्कीरणदाए चरिमसमएण सह चरिमफालिं घेरेदूण द्विदजीवेण चरिमफालीए अव - निदाए अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । कुदो ? घादिदसेसट्ठिदिसंतकम्मस्स रूवाहियडिदिखंडएणूणधुवट्टिदिपमाणत्तदंसणादो | एवं कदे रूवाहियाइदिखंडयमेत्ताणि चैव अपुणरुत्तट्ठाणाणि लद्धाणि हवंति । घादिदसेस सव्वजहण्णट्ठिदिसंतकम्मं पेक्खिदूण पढमट्ठिदिखंडयं घादिय विदसे सुक्क सद्विदिसंतकम्मं द्विदिकंदयमेत्तेण अहियं होदि । पुणो एवं ट्ठिदिसंतकम्मझणाणं बिदियट्ठिदिकंदयमस्सिदूण अपुणरुत्तट्ठाणुपत्ति वत्तइस्सामा । तं जहा - एगेगसमउत्तरकमेण द्विदितं धरेदूण द्विदरूवाहियकंदयमेत्तजीवेसु सव्वजहण्णडिदिसंतकम्मिएण बिदियट्ठिदिखंडयस्स पढमफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए पढमसमओ गलदि । ताधे अपुणरुत्तट्ठाणं उप्पज्जदि, पुव्विल्लट्ठिदिसंतकम्मादो एदस्स द्विदिसंतकम्मस्स समऊत्तदंसणा दो । पुणो एदेणेव बिदियफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्वार बिदियसमओ गलदि । एदं पि अपुणरुत्तट्ठाणं होदि । एवं समऊणुक्कीरणद्धामेत्तफालीओ पादिय सम स्थानोंके उत्पन्न होनेपर पुनः प्रथम स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालिके अलग किये जानेपर उत्कीरणकालका अन्तिम समय गलता है । तब अपुनरुक्त स्थान उत्पन्न होता है, क्योंकि, उस समय घातनेसे शेष रहा स्थितिसन्तकर्म चार रूपोंसे कम ध्रुवस्थिति प्रमाण पाया जाता है । इस प्रकार इस क्रमसे स्थितिकाण्डक प्रमाण अपुनरुक्त स्थानोंको उत्पन्न कराके पश्चात् उत्कीरणकालके अन्तिम समयके साथ अन्तिम फालिको लेकर स्थित जीवके द्वारा अन्तिम फालिके अलग किये जानेपर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है, क्योंकि, घातनेसे शेष रहा स्थितिसन्तकर्म एक अधिक स्थितिकाण्डक से हीन ध्रुवस्थिति प्रमाण देखा जाता है । ऐसा करनेपर एक अधिक स्थितिकाण्डकके बराबर ही अपुनरुक्त स्थान प्राप्त होते हैं । घातनेसे शेष रहे समस्त जघन्य स्थितिसत्कर्मकी अपेक्षा प्रथम स्थितिकाण्डकका घात करके स्थापित किया हुआ शेष उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म स्थितिकाण्डक मात्र से अधिक होता है । अब इस प्रकार से स्थितिसत्कर्मस्थानोंके द्वितीय स्थितिकाण्डकका आश्रय करके अ पुनरुक्त स्थानों की उत्पत्तिको कहते हैं। यथा- एक एक समयकी अधिकता के क्रमसे स्थितिसत्वको लेकर स्थित एक अधिक स्थितिकाण्डक मात्र जीवों में से सर्वजघन्यस्थिति सत्कर्मिक जीवके द्वारा द्वितीय स्थितिकाण्डककी प्रथम फालिके अलग किये जानेपर उत्कीरणकालका प्रथम समय गलता है । उस समय अपुनरुक्त स्थान उत्पन्न होता है, क्योंकि, पूर्वके स्थितिसत्कर्मकी अपेक्षा यह स्थितिसत्कर्म एक समय कम देखा जाता है । फिर इसी जीवके द्वारा द्वितीय फालिके अलग किये जानेपर उत्कीरणकालका द्वितीय समय गलता है । यह भी अपुनरुक्त स्थान होता है । इस प्रकार एक समय कम उत्कीरणकाल १ ताप्रतावतः प्राक् ' एवं समऊणुक्कीरणद्ध मित्तट्ठाणं होदि ' इत्यधिकः पाठः । छ. ११-१३ Jain Education: International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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