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________________ ९५० . छक्खंडागमे वेयणाखंडं [१, २, ६, ९. द्विदिमेत्तं होदूण पुणो उक्कीरणद्धाए चरिमसमए गलिदे उवगयदुसमऊणधुवटिदित्तादो । पुणो तदियजीवेण समऊणुक्कीरणद्धाए दुरूऊणट्ठिदिकंदएण च अब्भहियधुवट्ठिीदसंतकम्मिएण पढमट्ठिदिकंदयस्स पढमफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए पढमसमओ गलदि । एसो अणुक्कस्सद्विदिवियप्पो पुणरत्तो होदि । पुणो तणेव बिदियफालीए अवणिदाए हिदिखंडयउक्कीरणद्धाए बिदियसमओ गलदि । [ एदं ] द्विदिवाणं पुणरुतं होदि । तेणेव जीवेण पुणो तस्सेव द्विदिखंडयस्स तदियफालीए अवणिदाए उवकीरणद्धाए तदियसमओ गलदि । एवमेदेण कमेण समऊणुक्कीरणद्धामेत्तसमएसु गलिदेसु त्तेत्तियमेत्ताओ चेव फालीओ पदंति पुणरुत्तट्ठाणाणि च उप्पज्जति । पुणो एदेणेव जीवेण पढमट्ठिदिखंडयस्स चरिमुक्कीरणसमएण सह चरिमफालीए अवणिदाए अपुणरुत्तट्ठाणं हेदि। कुदो ? सेसहिदिसंतकम्मस्स त्तिरूवूणधुवहिदिपमाणत्तदंसणादो। पुणो चउत्थजीवेण समऊणुक्कीरणद्धाए तिरूऊणट्ठिदिखंडएण अहियधुवद्विदिसंतकम्मिएण पढमट्ठिदिखंडयस्स पढमफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए पढमसमओ गलदि, पुणरुत्तद्विदिट्ठाणमुप्पज्जदि । पुणो तेणेव तरस बिदियफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए तदियसमओ गलदि । एदं पि हाणं पुणरुत्तमेव । एवं समऊणुक्कीरणद्धामेत्तपुणरुत्त --....................................... उत्कीरणकालके अन्तिम समय के गल जानेपर दो समय कम ध्रुवस्थिति पायी जाती है। पुनः एक समय कम उत्कीरणकाल और दो रूप कम स्थितिकाण्डकसे अधिक ध्रुवस्थितिसत्त्व संयुक्त तृतीय जीवके द्वारा प्रथम स्थितिकाण्डक सम्बन्धी प्रथम फालिके अलग करनेपर उत्कीरणकालका प्रथम समय गलता है । यह अनुत्कृष्ट स्थितिविकल्प पुनरुक्त है । पश्चात् उसी जीवके द्वारा द्वितीय फालिके अलग करनेपर स्थितिकाण्डकउत्कीरणकालका द्वितीय समय गलता है। यह स्थितिस्थान पुनरुक्त है । उक्त जीवके द्वारा फिरसे उसी स्थितिकाण्डककी तीसरी फालिके अलग किये जाने पर उत्कीरणकालका तीसरा समय गलता है। इस प्रकार इस क्रमसे एक समय कम उत्कीरणकाल प्रमाण समयोंके गल जाने पर उतनी ही फालियां पतित होती हैं और पुनरुक्त स्थान उत्पन्न होते हैं। पश्चात् इसी जीवके द्वारा प्रथम स्थितिकाण्डकके अन्तिम समयके साथ अन्तिम फालि के अलग किये जाने पर अपुनरुक्त स्थान होता है, क्योंकि, शेष स्थितिसत्त्व तीन रूपोंसे हीन धुवस्थिति प्रमाण देखा जाता है। पुनः चतुर्थ जीवके द्वारा एक समय कम उत्कीरणकाल से और तीन समय कम स्थितिकाण्डकसे अधिक ध्रुवस्थितिसत्त्वर्मिक होकर प्रथम स्थितिकाण्डककी प्रथम फालिके अलग किये जानेपर उत्कीरणकालका प्रथम समय गलता है और पुनरुक्त स्थितिस्थान उत्पन्न होता है । पश्चात् उसी जीवके द्वारा उक्त स्थितिकाण्डककी द्वितीय फालिके अलग किये जानेपर उत्कीरणकालका तृतीय समय गलता है। यह भी स्थान पुनरुक्त ही है । इस प्रकार एक समय कम उत्कीरणकाल प्रमाण पुनरुक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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