SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, २, ६, ९ ] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्त [ ९५ क्कीरणद्धाए सगलेगट्ठिदिखंडएण च अहियधुवहिदीए एइदिएसु उप्पण्णजीवेण पढमफालीए पादिदाए उक्कीरणद्धाए पढमसमओ गलदि । एदं हिदिसंतठ्ठाणं पुणरुत्तं होदि, धुवट्टिदीदो अहियत्तादो । बिदियफालिपदिदसमए चेव उक्कीरणद्धाए बिदियसमओ गलदि । एवं पि ट्ठाणं पुणरुत्तं चेव । तदियफालिपदिदसमए उक्कीरणद्धाए तदियसमओ गलदि । विदिसंतहाणं पुणरुतं होदि । एवं णेदव्वं जाव अंतीमुहुत्तमेतद्विदिउक्कीरणसमयाणं दुचरिमसमओ त्ति । पुणो द्विदिउक्कीरणकालचरिमसमए गलिदे पढमहिदिखंडयस्स चरिमफाली पददि । एदमपुणरुत्तट्ठाणं होदि, धुवहिदि पेक्खिदूण समऊणट्ठाणादो। पुणो समऊणुक्कीरणद्धाए समऊणहिदिखंडएण च अहियधुवहिदीए सह एइंदिएसु उप्पण्णजीवेण पढमफालीए पादिदाए उक्कीरणद्धाए पढमसमओ गलदि । एदं द्वाणं पुणरुत्तं होदि । विदियफालीए सह उवकीरणद्धाए बिदियसमए गलिदे वि पुणरुत्तट्ठाणं होदि । तदियफालीए सह उक्कीरणद्धाए तदियसमए गलिदे वि पुणरुत्तट्ठाणं होदि । एवं णेदव्वं जाव समऊणुक्कीरणद्धामेत्तफालीओ पदिदाओ त्ति । पुणो द्विदिकंडयचरिमफालीए पदिदाए उक्कीरणद्धाए चरिमसमओ गलदि । एदमपुणरुत्तट्ठाण होदि । कुदो ? द्विदिकंदयचरिमफालीए पदिदाए सेसहिदिसंत समऊणधुव फिर इसको इसी प्रकार ही स्थापित करके एक समय कम उत्कीरणकाल और सम्पूर्ण एक स्थितिकाडकसे अधिक ध्रुवस्थितिके साथ एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुए जीवके द्वारा प्रथम फालिको पतित कराने पर उत्कीरणकालका प्रथम समय गलता है। यह स्थितिसत्त्वस्थान पुनरुक्त है, क्योंकि, वह ध्रुवस्थितिसे अधिक है। द्वितीय फालिके पतित होने के समयमें ही उत्कीरणकालका द्वितीय समय गलता है। यह भी स्थान पुनरुक्त ही है । तृतीय फालि के पतित होनेके समयमें उत्कीरणकालका तृतीय समय गलता है । इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थितिके उत्कीरणकाल के समयों में द्विचरम समय तक ले जाना चाहिये । पश्चात् स्थिति उत्कीरणकालके अन्तिम समयके गलनेपर प्रथम स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालि पतित हो चुकती है। यह अपुनरुक्त स्थान है, क्योंकि, ध्रुवस्थितिकी अपेक्षा यह स्थान एक समय कम है। पुनः एक समय कम उत्कीरणकाल से और एक समय कम स्थितिकाण्डकसे अधिक ध्रुवस्थितिके साथ उत्पन्न हुए जीवके द्वारा प्रथम फालि के पतित करानेपर उत्कीरणकालका प्रथम समय गलता है। यह स्थान पनरुक्त है। द्वितीय फालिके साथ उत्कीरणकाल के द्वितीय समयके गलनेपर भी पुनरुक्त स्थान होता है। तृतीय फालिके साथ उत्कीरणकालके तृतीय समयके गलनेपर भी पुनरुक्त स्थान होता है। इस प्रकार एक समय कम उत्कीरणकाल मात्र फालियोंके पतित होने तक ले जाना चाहिये। तत्पश्चात् स्थितिकाण्डक.की अन्तिम फालिके पतित होनेपर उत्कीरणकालका अन्तिम समय गलता है । यह अपुनरुक्त स्थान है, क्योंकि, स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालिके पतित होनेपर शेष स्थितिसत्त्व एक समय कम ध्रुवस्थिति प्रमाण होकर फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy