SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९४ छक्खंडागमे वेयणाखंड पुणो बिदिओ जीवो समऊणुक्कीरणद्धाए अहियसमयाहियधुवट्ठिदीए सह एइंदिएसु उववण्णो। तदो अण्णो तदिओ जीवो समऊणुक्कीरणद्धाए अहियदुसमयाहियधुवहिदीए सह एइंदिएसु उववण्णो । पुणो चउत्थो जीवो समऊणुक्कीरणद्धाए अहियतिसमयाहियधुवहिदीए सह एइंदिएसु उववण्णो। पुणो अण्णो जीवो समऊणुक्कीरणद्धाए चदुसमयाहियधुवहिदीए च एइंदिएसु उववण्णो । एवं समऊणुक्कीरणद्धाए एगेगसमयाहियधुवट्ठिदीए च ताव उप्पादेदव्वं जाव समऊणुक्कीरणद्धाए एगसगलहिदिखंडएण च अब्भहियधुवहिदीए एइंदिएसु पविट्ठो त्ति। एवं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तजीवा एगसमएण एइंदिएसु पवेसिदव्या। पुणो एदेसु रूवाहियद्विदिकंदयमेत्तजीवेसु हिदिघादं करेमाणेसु धुवद्विदीए हेट्ठा द्विदिसतठ्ठाणुप्पत्तीए भण्णमाणाए समऊणुक्कीरणद्धाए अहियधुवद्विदीए सह एइंदिएसु उप्पण्णेण पढमफालीए पादिदाए उक्कीरणद्धाए पढमसमओ गलदि । एदं हिदिसंतवाणं पुणरुतं, धुवहिदीए उवार समुप्पत्तीदो। पुणो विदियफालिपदिदसमए चेव उक्कीरणद्धाए बिदियसमओ गलदि । एदं पि पुणरुतं चेव । एवं णेदव्वं जाव द्विदिखंडयचरिमफालिमपादिय उक्कीरणद्धाए चरिमसमयं धेरदूण विदो त्ति । पुणो एदमेवं चेव द्वविय समऊणुएकेन्द्रियों में प्रविष्ट हुआ । फिर दूसरा जीव एक समय कम उत्कीरणकालसे अधिक और एक समयसे अधिक ध्रुवस्थितिके साथ एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुआ। उससे अन्य तीसरा जीव एक समय कम उत्कीरणकालसे अधिक और दो समयोंसे अधिक धवस्थितिके साथ एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुआ। पुनः चतुर्थ जीव एक समय कम उत्कीरणकालसे अधिक और तीन समयोंसे अधिक ध्रवस्थितिके साथ पकेद्रियों में उत्पन्न हुआ। पुनः अन्य जीव एक समय कम उत्कीरणकाल और चार समय अधिक ध्रुवस्थितिके साथ एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुआ । इस प्रकार एक समय कम उत्कीरणकाल और एक एक समय अधिक ध्रुवस्थितिके साथ एक समय कम उत्कीरणकाल और एक सम्पूर्ण स्थितिकाण्डकसे अधिक ध्रुवस्थितिके साथ एकेन्द्रियों में प्रविष्ट होने तक उत्पन्न कराना चाहिये । इस प्रकार पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र जीवोंको एक समयसे एकेन्द्रियोंमें प्रविष्ट कराना चाहिये। पुनः एक अधिक स्थितिकाण्डक मात्र इन जीवोंके द्वारा स्थितिघात करते रहनेपर ध्रुवस्थितिके नीचे स्थितिसत्त्वस्थानोंकी उत्पत्तिका कथन करते समय एक समय कम उत्कीरणकालसे अधिक ध्रवस्थितिके साथ एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुए जीवके द्वारा प्रथम फालिके पतित कराये जाने पर उत्कीरणकालका प्रथम समय गलता है। यह स्थितिसत्त्वस्थान पुनरुक्त है, क्योंकि, उसकी ध्रुवस्थितिके ऊपर उत्पत्ति है । पुनः द्वितीय फालिके पतित होनेके समयमें ही उत्कीरणकालका द्वितीय समय गलता है। यह भी स्थान पुनरुक्त ही है । इस प्रकार स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालिको पतित न कराकर उत्कीरणकालके अन्तिम समयको लेकर स्थित जीव तक ले जाना चाहिये। प्रतिषु ' एवं ' इति पाठः। २ प्रतिषु ' एवमेवं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy