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________________ ७८) छक्खंडागमे वेयणाखंड (१, २, ६, ३. पदमीमांसाए णाणावरणीयवेयणा कालदो किमुक्कस्सा किमणुक्कस्सा किं जहण्णा किमजहण्णा ? ॥३॥ एत्थ णाणावरणग्गहण सेसकम्मपडिसेहफलं । कालणिदेसो दव्व-खेत्त-भावपडिसेहफलो । एदं पुच्छासुत्तं जेण देसामासियं तेण अण्णाओ णव पुच्छाओ सूचेदि । णाणावरणीयवेयणा किमुक्कस्सा किमणुक्कस्सा किं जहण्णा किमजहण्णा किं सादिया किमणादिया किं धुवा किमडुवा किमोजा किं जुम्मा किमोमा किं विसिट्ठा किं णोम-णोविसिट्ठा त्ति । पुणो एदेणेव सुत्तेण अण्णाओ तेरस पदविसयपुच्छाओ सूचिदाओ । काओ त्ति पुच्छिदे उच्चदेउक्कस्सणाणावरणीयवेयणा किमणुक्करसा किं जहण्णा किमजहण्णा किं सादिया किमणादिया किं धुवा किमडुवा किमोजा किं जुग्मा किमोमा किं विसिट्ठा किं णोम-णोविसिट्ठा त्ति उक्कस्सपदम्मि बारस पुच्छाओ । एवं सेसपदाणं पि पादेक्कं बारस पुच्छाओ वत्तव्वाओ। एत्थ सव्वपुच्छासमासो एगूणसत्तरिसदमेत्तो | १६९ । । तम्हा एदं देसामासियसुत्तं तेरससुत्तप्पयं । एदेर्सि सुत्ताणं परूवणा उत्तरदेसामासियसुत्तेण कीरदे उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा जहण्णा वा अजहण्णा वा ॥४॥ पदमीमांसा अधिकारमें ज्ञानावरणीय कर्मकी वेदना कालकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट है, क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है और क्या अजघन्य है ? ॥३॥ सूत्रमें ज्ञानावरण पदका ग्रहण शेष कर्मोंका प्रतिषेध करने के लिये किया है। कालका निर्देश द्रव्य, क्षेत्र व भावका प्रतिषेध करनेवाला है । यह पृच्छासूत्र चूंकि देशामर्शक है, अतः वह सूत्रोक्त चार पृच्छाओंके अतिरिक्त नौ दूसरी पृच्छाओंको भी सूचित करता है । ज्ञानावरणीयवेदना क्या उत्कृष्ट है, क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है, क्या अजघन्य है, क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है, क्या अध्रुव है, क्या ओज है, क्या युग्म है, क्या ओम है, क्या विशिष्ट है, और क्या नोम-नोविशिष्ट है? इसके अतिरिक्त इसी सूत्रके द्वारा दूसरी तेरह पदविषयक पृच्छायें सूचित की गई हैं। वे कौनसी हैं, ऐसा पूछनेपर उत्तर देते हैं-उत्कृष्ट ज्ञानावरणीयवेदना क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है, क्या अजघन्य है, क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है, क्या अधव है, क्या मोज है, क्या युग्म है, क्या ओम है, क्या विशिष्ट है, और क्या नोमनोविशिष्ट है। ये बारह पृच्छायें उत्कृष्ट पदके विषयमें हैं। इसी प्रकार शेष पदोंमेंसे भी प्रत्येक पदके विषयमें बारह पृच्छाओंको कहना चाहिये। यहां सब पृच्छाओंका योग एक सौ उनत्तर (१६९) मात्र है। इस कारण यह देशामर्शक सूत्र तेरह सूत्रों स्वरूप है । इन सूत्रोंकी प्ररूपणा अगले देशामर्शक सूत्रके द्वारा की जाती है। उक्त ज्ञानावरणीयवेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट भी है, अनुत्कृष्ट भी है, जघन्य भी है और अजघन्य भी है ॥ ४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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