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________________ ६२) छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, १, १०. (एदमेक्कक्खोहिणीए पमाणं । एरिसियाओ चत्तारि अक्खोहिणीओ सग-सगभासाहि अक्खराणक्खरसरूवाहि अक्कमेण जदि भणंति तो वि संभिण्णसोदारो अक्कमेण सव्वभासाओ घेत्तूण पदुप्पादेदि । एदेहितो संखेज्जगुणभासासंभलिदतित्थयरवयणविणिग्गयज्झुणिसमूहमक्कमेण गहणक्खमम्मि संभिण्णसोदारे ण चेदमच्छेरयं । कुदो एदं होदि ? बहुबहुविहक्खिप्पावरणीयाणं खओवसमेण । एदेसिं संभिण्णसोदाराणं जिणाणं णमो इदि उत्त्रं होदि । संपहि ओग्गह-ईहावाय-धारणजिणाणमेदेसु चेव अंतब्भावो होदि त्ति पुध णमोक्कारो ण कदो । उजुमदीणं णमोक्कारकरणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि (णमो उजुमदीणं ॥ १०॥) ___ परकीयमतिगतोऽर्थः उपचारेण मतिः । ऋज्वी अवका । कथमृजुत्वम् ? यथार्थमत्यारोहणात् यथार्थमभिधानगतत्वात् यथार्थमभिनयगतत्वाच्च । ऋधी मतिर्यस्य सः ऋजु यह एक अक्षौहिणीका प्रमाण है। ऐसी यादि चार अक्षौहिणी अक्षर-अनक्षर स्वरूप अपनी अपनी भाषाओंसे युगपत् बोलें तो भी संभिन्नश्रोता युगपत् सब भाषाओंको ग्रहण करके उत्तर देता है। इमसे संख्यातगुणी भाषाओंसे भरी हुई तीर्थकरके मुखसे निकली ध्वनिके समूहको युगपत् ग्रहण करने में समर्थ ऐसे संभिन्नश्रोताके विषयमें यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है । शंका-यह कहांसे होती है ? समाधान-बहु, बहुविध और क्षिप्र ज्ञानावरणीय कर्मोंके क्षयोपशमसे होती है। इन संभिन्नश्रोता जिनोंको नमस्कार हो, यह सूत्रका अभिप्राय है । अब अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा रूप जिनोंका चूंकि इन्हीं में अन्तर्भाव है, अतः उन्हें पृथक् नमस्कार नहीं किया। ऋजुमति जिनों को नमस्कार करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञानियोंको नमस्कार हो ॥ १० ॥ - दूसरेकी मति अर्थात् मनमें स्थित अर्थ उपचारसे मति कहा जाता है। ऋजुका अर्थ वक्रता रहित है। ___ शंका ---ऋजुता कैसे है ? समाधान --- यथार्थ मतिका विषय होने, यथार्थ वचनगत होने और यथार्थ अभि . नय अर्थात् शारीरिक चेष्टागत होनेसे उक्त मतिमें ऋजुता है। ऋजु है मति जिसकी वह ऋजुमति कहा जाता है। सरलतासे मनोगत, सरलतासे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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