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________________ ४, १, ८.] कदिअणियोगद्दारे पदाणुसारिरिद्विपरूवणा (५९ पदाणं गणहरदेवाणं दुवालसंगाभावप्पसंगादो । बीजपदसरूवावगमो बीजबुद्धी, तत्तो दुवालसंगुष्पत्ती । ण च ताए विणा तमुप्पज्जदि, अइप्पसंगादो । ण च तत्थ पदाणुसारिसण्णिदणाणाभावो, बीजबुद्धीए अवगयसरूवेहिंतो कोहबुद्धीए पत्तावट्ठाणेहिंतो . बीजपदेहितो ईहावाएहि विणा बीजपदुभयदिसाविसयसुदणाणक्खर-पद-वक्क-तदट्ठबिसयसुदणाणुप्पत्तीए अणुववत्तीदो । ण संभिण्णसोदारत्तस्स अभावो, तेण विणा अक्खराणक्खरप्पाए सत्तसदट्ठारसकुभास-भाससरूवाए णाणाभेदभिण्णबीजपदसरूवाए पडिक्खणमण्णण्णभावमुवगच्छंतीए दिव्वज्झुणीए गहणाभावादो दुवालसंगुप्पत्तीए अभावप्पसंगो त्ति । तम्हा बीजपदसरूवावगमो बीजबुद्धि त्ति सिद्धं । ततो भेदाभावादो जीवो वि बीजबुद्धी । तेर्सि बीजबुद्धीणं जिणाणं णमो इदि वुत्तं होदि । एसा कुदो होदि १ विसिट्ठोग्गहावरणीयक्खओवसमादो । (णमो पदाणुसारीणं ॥ ८॥ और अनक्षर स्वरूप बहुत लिंगालिंगिक बीजपदोंका ज्ञान न होनेसे द्वादशांगके अभावका प्रसंग आवेगा। बीजपदोंके स्वरूपका जानना बीजबुद्धि है, इससे द्वादशांगकी उत्पत्ति होती है । उस बीजबुद्धिके विना द्वादशांगकी उत्पत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि, ऐसा होनेमें अतिप्रसंग आता है। उनमें पदानुसारी नामक ज्ञानका अभाव नहीं हैं, क्योंकि, बीजबुद्धिसे जाना गया है स्वरूप जिनका तथा कोष्ठबुद्धिसे प्राप्त किया है अवस्थान जिन्होंने ऐसे बीजपदोंसे ईहा और अवायके विना बीजपदकी उभय दिशा विषयक श्रुतज्ञान तथा अक्षर, पद, वाक्य और उनके अर्थ विषयक श्रुतज्ञानकी उत्पत्ति बन नहीं सकती। उनमें संभिन्नश्रोतृत्वका अभाव नहीं है, क्योंकि, उसके विना अक्षरानक्षरात्मक, सात सौ कुभाषा और अठारह भाषा स्वरूप, नाना भेदोसे भिन्न बीजपद रूप, व प्रत्येक क्षणमें भिन्न भिन्न स्वरूपको प्राप्त होनेवाली ऐसी दिव्यध्वनिका ग्रहण न होनेसे द्वादशांगकी उत्पत्तिके अभावका प्रसंग होगा। इस कारण बीजपदोंके स्वरूपका जानना बीजवुद्धि है, ऐसा सिद्ध हुआ । उक्त बुद्धिसे भिन्न न होने के कारण जीव भी बीजवुद्धि है। उन बीजबुद्धिके धारक जिनोंको नमस्कार हो, यह सूत्रका अभिप्राय है । शंका-यह बीजबुद्धि कहांसे होती है ? समाधान-वह विशिष्ट अवग्रहावरणीयके क्षयोपशमसे होती है । पदानुसारी ऋद्धिके धारक जिनोंको नमस्कार हो ॥ ८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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