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________________ ०, १, ७१. ] कदिअणियोगक्षरे करणकदिपवणा [ ४२७ सणीसु ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण चउवीसमुहुत्ता । एगजीवं पहुच्च जहणेण खुद्दाभवग्गहण तिसमजणं, उक्कस्सेण तेत्तीस सागरोवमाणि समयाहियपुव्वकोडीए सादिरेयाणि । ओरालिय-वेउब्वियपरिसादणकदीए पुरिसवेदभंगो । ओरालियसंघादण - परिसादणकदीए पुरिसवेदभंगा । वेउव्वयसंघादणकदीए तसकाइयभंगो | वेउब्वियसंघादणपरिसादणकदीए पुरिसवेदभंगो । आहारतिष्णिपदाणं पुरिसवेदभंग । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी ओघं । असण्णीसु ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहणेण खुद्दाभवग्गहणं चदुसमऊणं, उक्कस्सेण पुव्वकोडी चदुसमयाहिया । ओरालियवेउव्वियपरिसादणकदीए वेउव्वियसंघादण - संघादणपरिसादणकदीणं तिरिक्खभंगो । ओरालियसंघादण - परिसादणकदीए पंचिंदियतिरिक्खभंगो | तेजा - कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी ओघं | आहाररसु ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीव पडुच्च ओघं । एगजीवं पडुच्च नह संज्ञी जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से चौबीस मुहूर्त प्रमाण होता है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तर जघन्यसे तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे एक समय व पूर्वकोटिसे अधिक तेतीस सागरोपम काल प्रमाण होता है । औदारिक और वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति के अन्तर की प्ररूपणा पुरुषवेदियोंके समान है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा पुरुषवेदियोंके समान है । वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति अन्तरकी प्ररूपणा त्रसकायिकोंके समान है । वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातन कृतिके अन्तरकी प्ररूपणा पुरुषवेदियोंके समान है । आहारकशरीरके तीनों पदों की प्ररूपणा पुरुषवेदियोंके समान है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति की प्ररूपणा ओघके समान है । असंशी जीवों में औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा अन्तर जघन्यसे चार समय कम क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्ष से चार समय अधिक एक पूर्वकोटि काल प्रमाण होता है । औदारिक और वैकि· यिकशरीरकी परिशातनकृतिका तथा वैक्रियिकशरीरकी संघातन व संघातन-परिशातनकृति अन्तरकी प्ररूपणा तिर्येचोंके समान है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति की प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यचोंके समान है। तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति की प्ररूपणा ओघके समान है । आहारकों में औदारिकशरीरकी संघातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तर जघन्यसे चार समय कम क्षुद्रभव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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