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________________ 24] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, १, ७१. अंतमुतं । संघादण परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण सत्त रार्दिदियाणि । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । अधवा, उक्कस्सेण एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । सम्मामिच्छादिट्ठी अप्पप्पणो पदाणं णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्पेन पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । सास सम्मादिट्ठीसु ओरालियसंघादणकदीए दोण्हं परिसादणकदीए तेजा - कम्मइयसंघादण - परसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए वेउव्वियसंघादण-संघादणपरिसादणकदीणं णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तोमुहुत्तं । मिच्छादिट्ठीसु ओरालिय- वेउब्वियतिष्णिपदा तेजा - कम्मइयएगपदे। च ओघ । वैशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से सात रात्रि-दिन प्रमाण होता है। एक जीवकी अपेक्षा उसका अन्तर जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । अथवा, एक जीवकी अपेक्षा उत्कर्ष से अन्तर नहीं होता । सम्यग्मिथ्यादृष्टियों में अपने अपने पदोंका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग काल प्रमाण होता है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । सासादनसम्यग्दृष्टियों में औदारिकशरीरकी संघातनकृति, दोनों अर्थात् औदारिक व वैक्रियिकशरीरोंकी परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग काल प्रमाण होता है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। औदारिकशरीरकी संघातन परिशातनकृति तथा वैक्रियिकशरीरकी संघातन व संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग काल प्रमाण होता है । एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । मिथ्यादृष्टियों में औदारिक और वैक्रियिकशरीरके तीनों पदों तथा तैजस व कार्मणशरीर के एक पदके अन्तरकी प्ररूपणा ओधके समान है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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