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________________ कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा ४, १, ७१. ] उकाइय-वाउकाइयभंगो । ओरालिय-वेउब्वियपरिसादणकदीए वेउव्वियसंघादण-परिसादणकदी इंद्रियभंग | ओरालियसंघादण परिसादणकदीए तिरिक्खभंगो । वेउव्वियसंघादणकदीए एइंदियपज्जत्तभंगो | तेजा - कम्मइयसंघादणकदी ओघं । [ ४१३ 1 बादरपुढवीकाइय- बादरआउकाइय- बादरते उकाइय - बादरवा उकाइय- बादरवणप्फदिकाइय- बादरणिगोदजीव- बादरवणफदिपत्तेगसरीरअपज्जत्ताणं बादरइंदियअपज्जत्तभंगो । वणफदिकाइएसु ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहणेण ख़ुद्दाभवग्गहणं चदुसमऊणं, उक्कस्सेण दसवाससहस्साणि समयाहियाणि । ओरालियसंघादण - परिसादकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण चत्तारि समया । तेजा - कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी ओघं । बादरवणफदिकाइयाणं बादरवणप्फदिपत्तेगसरीरभंगो । णिगोदजीवाणं वणप्फदिभंगो । वरि ओरालियसंघादणकदीए उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं समयाहियं । एवं बादरणिगोदाणं । समान है । औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति तथा वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातन कृतिके अन्तरकी प्ररूपणा एकेन्द्रियोंके समान है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिज्ञातनकृतिका अन्तर तिर्यचोंके समान है । वैौक्रेयिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर एकेन्द्रिय पर्याप्तोंके समान है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातनपरिशातन कृतिके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है । बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक अपर्याप्त, बादर तेजकायिक अपर्याप्त, बादर वायुकायिक अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, बादर निगोद जीव अपर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त जीवोंकी प्ररूपणा बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके समान है । वनस्पतिकायिक जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे चार समय कम क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण और उत्कर्षसे एक समय अधिक दस हजार वर्ष प्रमाण होता है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातन कृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय प्रमाण होता है । तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिकी प्ररूपणा ओघके समान है । Jain Education International बादर वनस्पतिकायिकोंकी प्ररूपणा बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंके समान है । निगोद जीयोंकी प्ररूपणा वनस्पतिकायिकोंके समान है । विशेष इतना है कि उनमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर उत्कर्षसे एक समय अधिक अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । इसी प्रकार बादर निगोद जीवोंके कहना चाहिये । विशेष इतना है कि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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