SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१४] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, १, ७१. णवरि जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं । एवं पज्जत्ताणं । णवरि ओरालियसंघादणकदीए जहण्णेण अंतोमुहुत्तं तिसमऊणं । सव्वसुहुमाणं सुहुमेइंदियभंगो। तसदोण्णि पंचिंदियदुगभंगो। णवरि ओरालियपरिसादणकदीए वेउब्वियपरिसादणकदीए आहारतिण्णिपदाणमेगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण बेसागरोवमसहस्साणि पुवकोडिपुधत्तेणव्वहियाणि बेसागरोवमसहस्साणि देसूणाणि । तसअपज्जत्ताणं पंचिंदियअपज्जत्तभंगो । __ पंचमणजेोगि-पंचवचिजोगीसु ओरालिय-वेउब्वियपरिसादण-संघादणपरिसादणकदीणं तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए णाणगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । आहारपरिसादणसंघादणपरिसादणकदीणं णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण वासपुधत्तं । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । कायजोगीसु ओरालिय-वेउव्वियतिण्णिपदाणं एइंदियभंगो । णवरि वेउब्वियसंघादणसंघादणपरिसादणकदीणं जहण्णेण एगसमओ। आहारतिगस्स णाणाजीवं पडुच्च ओघ । एगजीवं उनमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर जघन्यसे तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण काल प्रमाण होता है । इसी प्रकार बादर निगोद पर्याप्त जीवोंकी प्ररूपणा है । विशेष इतना है कि उनमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर जघन्यसे तीन समय कम अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है ? सब सूक्ष्म जीवोंकी प्ररूपणा सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके समान है । त्रस और प्रस पर्याप्तोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंके समान है। विशेष इतना है कि औदारिकशरीरकी परिशातनकृति, वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति तथा आहारकशरीरके तीनों पदोंका अन्तर एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण तथा उत्कर्षसे क्रमशः पूर्वकोटिपृथत्क्वसे अधिक दो हजार सागरोपम व दो हजार सागरोपमसे कुछ कम है । त्रस अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय अपर्याप्तोंके समान है। पांच मनयोगी और पांच वचनयोगी जीवों में औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी परिशातन व संघातन-परिशातनकति तथा तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन कृतिका नाना व एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। आहारकशरीरकी परिशातन और संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे वर्षपृथक्व काल प्रमाण होता है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। काययोगियों में औदारिक और वैक्रियिकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा एकेन्द्रियोंके समान है। विशेष इतना है कि वैक्रियिकशरीरकी संघातन व संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर जघन्यसे एक समय होता है । आहारकशरीरके तीनों पदों की प्ररूपणा नाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy